Book Title: Naychakra Sara
Author(s): Meghraj Munot
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 68
________________ .. स्थाद्वाद स्वरूप... यह मानना होगा कि कंठी भी सर्वथा नष्ट नहीं हुई है। कंठीका सर्वथा नष्ट होना तब ही माना जा सकता है जब कि कंठीकी कोई चीज बाकी न बची हो । परन्तु जब कंठीका सारा सुवर्ण ही डोरेमें आ गया है तब यह कैसे कहा जा सकता है कि कंठी सर्वथा नष्ट हो गई है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि,-कंठीका नाश उसके आकारका नाश मात्र है और डोरेकी उत्पत्ति उसके आकारकी उत्पत्ति मात्र है और कंठी और डोरेका सुवर्ण एक ही है। कंठी और डोरा एक ही सुवर्णके आकारभेदके सिवा दूसरा कुछ नहीं है। - इस उदाहरणसे यह भली प्रकार समझमें आ गया कि कंठीको तोड़ कर डोरा बनानेमें कंठीके आकारका नाश, डोरेके आकारकी उत्पत्ति और सुवर्णकी स्थिति इस प्रकार उत्पाद, नाश और ध्रौव्य, (स्थिति ) तीनो धर्म बराबर हैं। इसी तरह घड़ेको फोड़कर फँडा बनाये हुए उदाहरणको भी समझ लेना चाहिए । घर जब गिर जाता है तब जिन पदार्थोंसे घर बना होता है वे चीजें कभी सर्वथा विलीन नहीं होती हैं। वे सब चीजें स्थूल रूपसे अथवा अन्ततः परमाणु रूपसे तो अवश्यमेव जगत्में रहती ही हैं। अतः तत्त्वदृष्टि से यह कहना अघटित है कि घर सर्वथा नष्ट हो गया है । जब कोई स्थूल वस्तु नष्ट हो जाती है तब उसके परमाणु दूसरी वस्तुके साथ मिलकर नवीन परिवर्तन खडा करते हैं; संसारके पदार्थ संसारही में इधर उधर विचरण करते हैं

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