Book Title: Jain Darshan Ane Mansahar
Author(s): Manilal Vanmali Shah
Publisher: Mahavir Jain Gyanoday Society
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જૈન દર્શન અને માંસાહાર,
अप्पे सिया भोयणजाए, बहु उज्झियधम्मिए तहप्पगारं बहु अट्ठियं मंसं मच्छं वा बहुकंटगं लाभे संते जाव णो पडिगाहेजा । (६२९)
से भिक्खू वा (२) जाव समाणे सिया णं परो बहुअट्ठिएण मंसेण मच्छेण उवणिमंतेजा “आउसंतो समणा, अभिकंखसि बहु अट्ठियं मंसं पडिगाहेत्तए ? " एयप्पगारं णिग्धासं सेाच्चा णिसम्म से पुव्वामेव आलाएजा, आउसा-त्ति वा भइणित्ति वा णा खलु मे कप्पइ से बहु अट्ठियं मंसं पडिगाहेत्तए । अभिकखसि मे दाउं, जावइयं तावइयं पोग्गलं दलयाहि, मा अट्ठियाई । " से सेवं वदंतस्स परो अभिहट्टु अंता पडिग्गहगंसि बहु अट्ठियं मंसं परिभाषत्ता णिहर्छु दलपजा; तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासूयं अणेस णिज्ज लाभे संते जाव णो पडिगाहेजा । से आहञ्च पडिगाहिए सिया, तं णो "हि" त्ति वएजा, णो "अणहि" त्ति वएजा सेत्त मायाए एगंत - मवक्कमेजा, (२) अहे आरामंसिवा अहे उवस्तयंसि वा अप्पंडए जाव अप्पसंताणए मंसगं मच्छगं भोश्चा अट्ठियाई कंटए गहाय से त मायाए एगंत-मवक्कमेज्जा । अहे ज्झामथंडिलंसि वा नाव पमजिय ( २ ) परिट्ठवेजा । (६३०)
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से भिक्खू वा (२) जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा मंसं वा मच्छं वा भज्जिज्जमाणं पेहाए तेल्लपूययं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए णो खद्धं खर्द्ध उवसंकमित्तु ओभासेज्जा । णन्नत्थ गिलाणणीसाए । ( ६१९ ) (आयारांग सूत्र प्रो. हेववाणु पा १३४ - १३५ - १३१)

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