Book Title: Jain Darshan Ane Mansahar
Author(s): Manilal Vanmali Shah
Publisher: Mahavir Jain Gyanoday Society

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Page 62
________________ વિદ્વાન મુનિરાજ, નિષ્ણાત પડતા, તથી શર શ્રાવકાએ આ પુસ્તકને માટે આપેલ અભિપ્રાયા. corcion जैनधर्मदिवाकर जैनागमरत्नाकर साहित्यरत्न जैनमुनि उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराजकी सम्मति. लेखक महोदयने जैनागम में आये हुए कतिपय मांस विषयक संदिग्ध पाठोंको स्पष्ट और परिमार्जित करने में जो श्रम किया है तथा उसमें उनको जो सफलता प्राप्त हुइ है तदर्थ वे अनेकानेक साधुवाद के पात्र हैं । जैनागमोंमें एसे और भी बहुतसे संदिग्ध पाठ हैं जिनका स्पष्टीकरण नितान्त आवश्यक है, जैनागमों के संदिग्ध स्थलोंका सप्रमाण स्पष्टीकरण करनेका हमारा चिरकाल से विचार चला आता है, तदर्थ हमने आगमोंके कतिपय संदिग्ध पाठोंकी संकलना करके उसको जैन संप्रदाय के प्रतिष्ठित साधु मुनिराजों तथा विद्वान् सद्गृहस्थोंकी सेवामें विचारार्थ उपस्थित भी किया, परन्तु शोकसे कहना पडता है कि इस विषयकी ओर किसी भी विद्वान्ने अधिक ध्यान देनेकी उदारता नही दिखाइ | हर्ष है कि प्रस्तुत पुस्तक के लेखक महोदयने इस ओर ध्यान दे कर आगमोंमें आये हुए मांसादि शब्द की सप्रमाण और समुचित उपपत्ति तथा स्पष्टीकरण करके जैनागम का मांसविधानके सम्पर्कसे अछूता बत

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