Book Title: Jain Darshan Ane Mansahar
Author(s): Manilal Vanmali Shah
Publisher: Mahavir Jain Gyanoday Society

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Page 70
________________ आपने अपनी सद्बुद्धि, धार्मिक ज्ञान और विवेकका अच्छा परिचय दिया है। निबंधकी विषयशैली अति रोचक व भावोत्पादक है । आजतक इस विषय में जितने मी लेख प्रगट हुए हैं और हमारे देखनेमें आये हैं उन सबका सारांश भी इसमें आ गया है और प्रस्तावना भी अच्छी है । अलावे कोइ २ अर्थ व युक्तियें भी सप्रमाण आपने इसमें दी हैं जो पहिले हमारे देखनेमें नहीं आई । वास्तव में एसे निबंधसे जो गलतफेहमी व भ्रम पैदा हुआ है वह जरुर दूर होना चाहिये । यदि कोइ न्याय द्रष्टिपूर्वक संबंध से अर्थपर विचार करें और यदि कोइ उपरी द्रष्टिसे शब्द के संबंध, आशयको न समझ कर या उसपर लक्ष न देकर केवल शब्द का हालमें प्रचलित एक ही अर्थ पकड़ कर टीका करे तो उनकी हठ बुद्धि है, उनके लिये उपाय ही नहीं है । ૧૪ श्रीमान् दानवीर सेठ अगरचंदजी मैदानजी सेठिया बंबई अधिवेशन के प्रेसीडन्ट साहबकी सम्मति " जैन दर्शन और मांसाहार" पुस्तक पढी । आपने इस विषय में सप्रमाण प्रकाश डाल कर एक बडी आवश्यकताकी पूर्ति की है एवं जैनधर्मपर लगाये जाने वाले असत्य आरोपको दूर किया है । आपका प्रयत्न सुंदर एवं स्तुत्य है । हमें विश्वास है कि इस पुस्तक के प्रचार से लोगोंका एतद्विषयक भ्रम दूर हो जायगा, एवं वे जैनधर्म की ओर विशेषरुपसे आकृष्ट होंगे । ·

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