Book Title: Jain Darshan Ane Mansahar
Author(s): Manilal Vanmali Shah
Publisher: Mahavir Jain Gyanoday Society

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Page 63
________________ लाकर उनकी स्वाभाविक निर्मलतामें प्रविष्ट हुए अज्ञान जनित आगन्तुक मलको धोकर जो प्रशंसनीय काम किया है उसके लिये कोई भी तटस्थ व्यक्ति उनको धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकता । हमारे बिचारमें तो लेखक महोदय को अपने विवेचनीय विषयमें पूरी सफलता प्राप्त हुइ है, उनकी कल्पनामें जहां नवीनता है वहां प्रामाणिकता और हृदयंगमिता भी है। यदि अन्य विद्वान् भी इस और द्रष्टिपात करनेका श्रम करे तो जैन शासनकी यह सबसे अधिक सेवा है । बाल ब्रह्मचारिणी विदुषी महासतीजी श्री पार्वतीजी महाराजकी सम्मति. इस समय जब कि कइ देशी तथा परदेशी अजैन विद्वानों द्वारा और कई अनजान जैनियोंद्वारा भी आचाराङ्ग दशकालिक तथा भगवतीजी आदि सूत्रोंकी गाथाओंका ठीक अर्थ न समझकर अर्थका अनर्थ हो रहा है, समय में इस पुस्तककी समाजको बहुत ही आवश्यकता थी । आपने इस पुस्तकको छपवाकर जैन समाजपरसे बहुत बडा कलङ्कको उतारने की चेष्टा की है, जिसके लिए सारी समाजको आपका कृतज्ञ होना चाहिए । अगर एसी पुस्तकका हिन्दी भाषा व उर्दूमें अनुवाद करके छपवा दिया जावे तो और भी ज्यादा लाभ हो सकता है । थोडे लिखे को विशेष जानना ।

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