________________
10
सम्यग्दर्शन की विधि
निर्मित यह तेरा यह शरीर है। क्रोधादि कषाय जन्य मानसिक और शारीरिक दुःखों से तू निरन्तर पीड़ित है। हीनाचार, अभक्ष्य भक्षण और दुराचार में तू निमग्न हो रहा है और ऐसा कर-करके तू अपनी आत्मा को निरन्तर ठग रहा है और जरा से ग्रस्त है। तू मृत्यु के मुख में पड़ा है तथापि व्यर्थ उन्मत्त हो रहा है, यही परम आश्चर्य है! क्या तू आत्म कल्याण का कट्टर शत्रु है? क्या तू अकल्याण चाहता है?'
कई जीव ऐसे भी हैं जो पुण्यार्जन को ही मोक्षमार्ग मानते हैं। वे निश्चय सम्यग्दर्शन प्राप्ति के लक्ष्य बगैर ही मात्र पुण्यार्जन में लगे रहते हैं और उससे ही मोक्ष मानते हैं। ऐसे बाल जीवों के ऊपर करुणा करके योगसार दोहा १५ में आचार्य भगवन्त ने बतलाया है कि 'और यदि तू अपने को तो जानता नहीं (अर्थात् सम्यग्दर्शन नहीं) और केवल पुण्य ही करता रहेगा तो भी तू बारम्बार संसार में ही भ्रमण करेगा परन्तु शिव सुख को प्राप्त नहीं कर सकेगा।' अर्थात् सम्यग्दर्शन के बिना शिव सुख की (मोक्ष की) प्राप्ति शक्य ही नहीं है।
आगे योगसार दोहा ५३ में भी आचार्य भगवन्त बतलाते हैं कि 'शास्त्र पढ़ने पर भी जो आत्मा को नहीं जानते (अर्थात् जिन्हें सम्यग्दर्शन नहीं है), वे भी जड़ हैं; इस कारण वे जीव निश्चय से निर्वाण को प्राप्त नहीं करते, यह बात स्पष्ट है।' अर्थात् मिथ्यात्व (अर्थात् सम्यग्दर्शन की अनुपस्थिति) अनन्त संसार का मूल कारण है। वह सभी पापों का राजा है। वह सम्यग्दर्शन से ही नष्ट होता है अर्थात् सम्यग्दर्शन, निर्वाण को प्राप्त करने के लिये अर्थात् शाश्वत् सुख की प्राप्ति के लिये परम आवश्यक है।
__इसीलिये स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा २९० से २९६ में बतलाया है कि - यह मनुष्य गति, आर्य खण्ड, उच्च कुल, धन, इन्द्रियों की परिपूर्णता, निरोगी शरीर, दीर्घायु, भद्र परिणाम, सरल स्वभाव, साधु पुरुषों की संगति, सम्यग्दर्शन-सत् श्रद्धान, चारित्र इत्यादि एक से एक अधिक-अधिक दुर्लभ है।
आत्मानुशासन श्लोक ७५ में बतलाया है कि मनुष्य प्राणी की दुर्लभता और उत्तमता के कारण विधि रूप मन्त्री ने उसकी अनेक प्रकार से रक्षा करके दष्ट परिणामी नरक के जीवों को अधो भाग में रखा, देवों को ऊर्ध्व भाग में रखा, लोक के चारों ओर अनेक महान अलंघ्य समुद्र तथा उनके चारों ओर घनोदधि घन और तनु, इस नाम के तीन पवनों से लपेटकर विस्तीर्ण कोट कर रखा और बीच में पूर्ण यत्न से मनुष्य प्राणी को रखा...'