Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ 4 बुद्धि (औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी, पारिणामिकी), 4 भेद मतिज्ञान के (अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा), 3 दृष्टि, 5 शक्ति (उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषाकार पराक्रम), 4 संज्ञा । ये 61 भेद अरूपी के हैं। इनमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श नहीं पाये जाते। इनमें अगुरु-लघु का एक भाँगा पाया जाता है। रूपी-अरूपी के थोकड़े सम्बन्धी ज्ञातव्य तथ्य 1. परमाणु से लेकर संख्यात-असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध तक सभी पुद्गल चतुस्पर्शी ही कहलाते हैं। 2. अनन्त प्रदेशी स्कन्ध चतुस्पर्शी तथा अष्टस्पर्शी दोनों ही प्रकार के होते हैं। जिनमें मात्र चार स्पर्श (शीत, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष) होते हैं तथा जो जघन्य एक आकाश प्रदेश से लेकर असंख्यात आकाश प्रदेश पर भी ठहर सकते हैं, उन्हें चतुस्पर्शी स्कन्ध कहते हैं। जिनमें आठों स्पर्श होते हैं तथा वे असंख्यात आकाश प्रदेशों पर ही ठहरते हैं, उन पुद्गल स्कन्धों को अष्टस्पर्शी कहते हैं। 3. संसार में जो भी पुद्गल हमें दृष्टिगोचर होते हैं, वे अष्टस्पर्शी स्कन्ध ही होते हैं। 4. इस थोकड़े में किया गया रूपी-अरूपी के भेदों का विभाजन सामान्य अपेक्षा से ही समझना चाहिए। क्योंकि अनेक भेद ऐसे भी हैं जो अरूपी, चतुस्पर्शी तथा अष्टस्पर्शी इन तीनों में ही आ

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 98