Book Title: Jain Bal Gutka Part 01 Author(s): Gyanchand Jaini Publisher: Gyanchand Jaini View full book textPage 9
________________ जैनवालगुटका प्रथम भाग | १६ - प्रसिद्ध सतियों के नाम । १ ब्राह्मी २. चंदनबाला ३ राजल ४ कौशल्या ५ मृगावती ६ सीता ७ समुद्रा ८ द्रौपदी ९ सुलसा १० कुन्ती ११ शीलावती १२ दमयंती १३ चूला १४ प्रभावती १५ शिवा१६ पद्मावती । नोट-सती तो अंजना रयणमंजूपा मैनासन्दरी विशल्या आदि अनेक हुई हैं यह उन में १६ मुख्य कहिये महान सती हुई हैं और जो पति के साथ जल मरे उसे अन्यमत में सती कहते हैं सो इन सतियोंके सतोपन का वह मतलव नहीं समझना, जैनमत में जो जलकर मरे उसे महा पाप अपघात माना है उस का फल नरक माना • है जैनमत में सती शीलवान को कहते हैं जो किसी प्रकार के भय या लोभ वगैरा से अपने शील को न डिगावे जैन मत में उस को सती माना है । अतीत (भूत) (पिछली) चौवीसी ॥ १ श्रीनिर्वाण, २ सागर, ३ महासाधु, ४ विमल प्रभ, ५ श्रीधर, ६ सुदत्त, ७ अमलप्रभ, ८ उद्धर९ अंगिर, १० सन्मति १९ सिन्धु नाथ, १२ कुसुमांजलि, १३ शिवगण, १४ उत्साह, १५ ज्ञानेश्वर १६ परमेश्वर, १० विमलेश्वर, १८ यशोधर, १९ कृष्णमति, २० ज्ञानमति, २१ शुद्धमति २२ श्रीभद्र २३ अतिक्रांत, २४ शान्ति ॥ अनागत (भविष्यत ) (आइन्दा) चौवीसी ॥ १ श्रीमहापद्म, २ सुरदेव, ३ सुपार्श्व, ४ स्वयंप्रभ ५ सर्वात्मभूत, ६ श्रीदेव, ७ कुलपुत्रदेव, ८ उदंकदेव, ९ प्रोष्ठिलदेव, १० जय कीर्ति, ११ मुनिसुव्रत १२ अर, (अमंम) १३ निष्पाप, १४ निःकषाय १५ विपुल, १६ निर्मल, १७ चित्रगुप्त, १८ समाधिगुप्त, १९ स्वयंभू, २० अनिवृत्त, २१ जयनाथ, २२ श्रीविमल, २३ देवपाल, २४ अनंतवीर्य ॥Page Navigation
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