Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 80
________________ अंबालगुटका प्रथम भाग। वो सिरफ धन का नाश वंशका कान चलना बीमारी होजाना ही है इसमें राजासे क्वक करजाना कैद करना अनेक राजा परस्त्री सेवने वाले को जीवते हुये ही को पिंजरे में डाल कर पिंजरा दरबत में लटका देते हैं जहां वह तड़फ तड़फ कर सूक सूक कर मरता है और परस्त्री के धारिसों कर कतल किया जाना लाठियों से माप मामा इतना नाम इसमें और भी फालतू है इसीलिये इसे महा व्यसन जान कर सबसे पीछे लिखा है कि यह सब व्यसनों का थाप महा व्यसन महा ऐप महापाप है . अथ २२ अभक्ष्य के त्याग का वर्णन। (आचार्य रचित प्राकृत पाठ) — यता पंचुरी घडविगई, हिंम विस करए असर्वमहीये ।। रयणी भोषण गंचिों, बहुबाआ अर्णत संघाणं ॥ १ ॥ घोलवडावार्यगण, अनुणि अनामाणि फुल्ल फलयाणि। तुच्छफलं चलिअरसं बझह वझाणि बीवीस ॥२॥ ' भाषा छंद वंद पाठ (कृप्पै छंद)। चारा घोलवरा निशिभोजन, बलुबीना बॅगेन संधान । बर पीपर उमर कर्टमर, पाकर फल जोहोत अजान । कंदमूल भाटी विच आमिष मधु माखन और मदिरापान । फल अतितुच्छ तुषार चलितरस, जिनमत यह बाईस अखान । नोट-पह सब २२ ममक्ष्य कहलाते हैं। जो इन बाईस ममक्षों में से सब का या किसी एक का स्याग करे तो इन कबुलसा इस प्रकार है।

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