Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 60
________________ યુદ્ધ जैनवालगुटका प्रथम भाग | ' ८ रसना, (जिल्हा), ९ घ्राण, (नासिका), १० चक्षु, (अ) ११ श्रोत्र (कान), १२ मन, इनको वश में नहीं रखना यह १२ अविरति हैं । २५- कषाय । १४८ कर्म प्रकृति में लिखी है ॥. १५- योग । - १. सत्यमनोयोग, २ असत्य मनोयोग, ३ उभय मनोयोग, ४अनुमय मनो योग, ५ सत्य बचन योग, ६ असत्यवचनयोग, उभयवचन योग, ८ अनुभय बचन योग, ९ औदारिक काय योग. १० औदारिक मिश्र काय योग, ११ वैकियिक काय योग १२ वैकियिक मिश्रकाययोग, १३ आहारककाययोग, १४आहारक मिश्रकाय योग, १५ कर्माणि काययोग ॥ ५७-संबर । ३गुप्ति, ५समिति, १०धर्मं, १२ भावना, २२ परीषह जय, पंचारित्र । ३- गुप्ति १ मनो गुप्ति २ वचन गुप्ति ३ काय गुप्ति । नोट- मन, वचन, काय को अपने वश में करना । । ५- समिति । १ ईर्ष्यासमिति, २ भाषासमिति, ३ एषणासमिति, ४ आदान निक्षेपण समिति, ५ प्रतिष्ठापनासमिति ॥ १० - धर्म । १ उसमक्षमा, २ मार्दव, ३ आर्जव, ४ सत्य, ५ शौच, ६ संयम, ७ तप, ८ स्याग, ९ आकिंचन्य, १० ब्रह्मचर्य ॥ त

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