Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 86
________________ जैनवाल का प्रथमक्षा | दिशा को कहते हैं अश्वर नाम है कपड़े का, अर्थात् दिशा हो हैं कपड़े जिस के यानि जिस के पास कोई कपड़ा नहीं विलकुल नग्न हो उस को दिगम्बर कहते हैं || परन्तु बाबू ज्ञानचंद जैनी लाहौर निवासी इस का अर्थ इस प्रकार करते हैं कि दिगं (sids) (तरफ) को कहते हैं अंबर नाम है आसमान का अर्थात हर तरफ यानि चारों तरफ है आसमान जिन के भावार्थ सिवाय आसमान के और उन के बदन के हर तरफ कपड़ा जेवर, बास, कुसा, शुङ्गार, पड़दा, मकान, (गृह) वगैरा कुछ भी नहीं यामि, जो ग्रह त्यागी जंगलों, बियावान, बनों में खुली जगह में बसने वाले बिलकुल नग्ग हो उन को दिगम्बर कहते हैं सो दिगम्बर साधुवों के मानने वाले दिग वरी कहलाते हैं । रियों में कितने थोक हैं ॥ श्वेतांवरियों में दो थोक हैं एक साधु पन्थी उन को थानक पन्थी या इंडिये भी कहते हैं वह साधुषों को मानते है मंदिर प्रतिमा को नही मानते हैं दूसरे पुजेरे (मंदिरमार्गी) कहलाते हैं यह मंदिर प्रतिमा को भी मानते है साधुओं को भी मानते है, ढडियों के शास्त्र साधु थलग हैं पुजेरों के शास्त्र साधु अलग हैं। ढूंढिये किस को कहते हैं । जो ढूढे तलाश करे कि मैं क्या वस्तु हूं मेरा क्या स्वरूप है मेरा इस संसार मा कर्तव्य है मेरी मजात किस तरह होगी ईश्वर का क्या रूप है उस का ध्यान कैसे करूं जो इस प्रकार की अपनी नजान (मुक्ति) की बातों को ढूंढे तलाश करे उसे दूढिया कहते हैं ॥ पुजेरे किस को कहते हैं । जो प्रतिबिम्ध को पूजे वह पूजेरे कहलाते हैं चूंकि ढूंढिये प्रतिमा को न मानते न पूलते इस वास्ते ढूंढियों के बरखिलाफ प्रतिमा को पजने वाले जो दूसरे थोक वाले हैं वह पूजेरे कहलाते हैं। भावडे किन को कहते हैं । पंजाब में श्वेतांबरी जैनियों को भावडे कहते हैं ॥ भावड़े का क्या मतलव १ पहले पंजाब में जैनी नहीं थे जब राजपूताने में जैनियों पर सखती हुई तब वहाँ से जहां तहां चले गये कुछ पंजाब में भी भाकर वसे सो पहले जमाने के जैनी

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