Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 43
________________ जैनबालगुटका प्रथम भाग। ५संघात। औदरिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस, कार्मण। ६ संहनन। १ वज्रवृषभनाराच २ वज्रनाराच ३ नाराच ४ अर्द्धनाराच ५कीलक ६ स्फाटिक ॥ ६ संस्थान। १समचतुरस्त्र न्यग्रोध स्वाति ४वामन पकुब्जक हुंडक ॥ ५ वर्ण। १ शुक्ल २ कृष्ण ३ नील ४ रक्त ५पीत ॥ २गंध। १ सुगंध, २ दुगंध ॥ पांचरस। १ तिक्त, २ कड़वा, ३ खारा, ४ खट्टा, ५ मिठा ॥ ८ स्पर्श। १करडा रनरम ३भारी हलका ५चिकना रूखा ७ठंडागरम । ४ आनुपूर्वो। १ नारक, २ तिर्यच, ३ मनुष्य, देव ४॥ २ स्थान। १प्रमाण स्थान, २ निर्णय स्थान । अथ अपिंड प्रकृतिके २८ भेद। प्रत्येक प्रकृति ८,त्रसादिक प्रकृति १०,स्थावरादिक प्रकृति १० ॥

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