Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ : ४८ 1. जैनबालगुटका, प्रथम भाग | समता भाव की जगह तीन काल सामायिक करना कहते हैं सो यह उनकी गलती है. ""सामायिक वारह व्रत में आचुकी है देखो चार शिक्षा व्रत का पहला भेद और ११ : प्रतिमा में तीसरी प्रतिमा इस लिये जो मूल गाथा में ऐसा पाठ है : (गुणमयतक समपठिमा) सो उस से आशय समता भाव ही है | श्रावक के ८ मूलगुण । ५ उदंवर | ३ मकार || 1 } इन आठ मूलका त्याग यानि न खाना तिलका नाम ८ मूल गुणः का पालना हैं इनके नाम भागे २२ अभश्य में लिखे हैं । १२ व्रत । ! ५ अणुव्रत, ३ गुणवत, ४ शिक्षाबत ॥ ५ अणुव्रत । 1 .१ अहिंसा अणुव्रत, २ सत्याणुव्रत, ३ परस्त्रीत्याग अणुव्रत ४ अचौर्य (चोरी त्याग) अणुव्रत, ५ परिग्रहपरिमाण अणुव्रत ॥ J. ३ गुणव्रत । १ दिगनत, २ देशव्रत, ३ अनर्थदंड त्याग ॥ ४ शिक्षाव्रत । 1 सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि संविभाग, भोगोपभोग परिमाण 20 १२ तप । i १ अनशन, २ ऊनोदर, ३ व्रत परिसंख्यान, ४ रसपरित्याग, ५ विशिय्यासन, ६ कायक्लेश, यह छे प्रकार का वाह्य तप ܐ ܕ : . ७ प्रायश्चित्तं, ८ पांच प्रकार का विनय ९ वैयावृत्य करना, १० स्वाध्याय करना, ११ व्युत्सर्ग (शरीर से ममत्व, छोड़ना) १२ । .. #!. चार प्रकारका ध्यान करना । यह छे प्रकार का अन्तरंग तप है ॥ THE Sales MPS

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107