Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 34
________________ जैनपालगुटका प्रथम भागः। ... वायुकाय। जो जीव सूक्ष्म या मोटेचलने फिरने उड़ने वाले वायु में रहते हैं, वह वायुकाय . में शामिल नहीं हैं, जिनजीवोंका शरीरखास वायुहीहै वह जीव वायुकायकहलातेहैं। . . बनस्पतिकाय। जो जीव चलने फिरने वाले कोडे वगैरा दरखतों में या फलों में होते हैं, वह बनस्पतिकाय में शामिल नहीं हैं, जिन जीवों का शरीर खास दरखत पौदे फल फूल है वह जीव वनस्पतिकाय कहलाते हैं। त्रसकाय। जो जीव चलने फिरने या उडनेवाले सांप, विस्छु कीडी वगैरा सूक्ष्म या मोटे जमीन में रहते हैं या मच्छी वगैरा जल में रहते हैं या हवा में उडवे फिरते रहते हैं या कीडे अल वगैरा सबजी, पात, फलों में रहते हैं यह सब प्रसकाय कहलाते हैं, अर्थात् मनुष्य देव,नारको पशुपक्षी जितने स्थलचर नभयर जलचर आदिनसनाडीके अंदर चलने फिरने वाले संसारी जीव हैं वह सर्व त्रस जीव कहलाते हैं। सजीव स्थान। कोई भी प्रसजीव प्रसनालीले वाहिर नहीं जा सकता, हां किसी त्रसजीवके प्रसनाली में तिष्टते हुए कुछ आत्म प्रदेश वाहिर जा सकते हैं जैसे केवलीके समुदघात होने के समय तीन लोक में आत्म प्रदेश फैलते हैं या जो असजीच अस नाली से मरकर बसनाली के वाहिर स्यावर बनते हैं या प्रसनाली से बाहिर स्थावर योनि .. छोडकर त्रस नालीके अंदर घस उत्पन्न होते हैं मरती दफे जब एक शरीरसे दूसरे शरीर तक उनके आत्म प्रदेश तंतु समान वन्धते हैं तव उनके आत्मप्रदेश वाहिर भीतर जाते हैं वरने पूरा अस जीव किसी हालतमेभी प्रसनालीले बाहिर नहीं जाता। प्रसनाली तीनलोक के मध्य एक राजू चौडी एक राजू लंबी १४ राजू ऊंची है इस में नीचे निगोद में-१ राजू में त्रसजीव नहीं ऊपर सर्वार्थ सिद्धि से ऊपर प्रसजीव नहीं वाकी कुछ कम १३ राजू मनाली में उसजीव भरे हुए हैं इस प्रसनाली में स्थावर भी भरे हुए हैं बसनाली इसको इस कारण से कहते हैं कि स्थावर जीव तो असनाली के वाहिर भीतर तीनलोक में भरे हुए हैं बस सिरफ • प्रस नाली में ही हैं इस ही वजह से यह असनाली कहलाती है और इस जीव इस में ही हैं.घाहिर नहीं ॥ .

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