Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 20
________________ जैनबालगुटका प्रथम भागे। __ अथ २४ तीर्थंकरों के २४ चिन्ह। । (भाषा छंद बंद पाठ)। दोहा-तीर्थंकर चौबीस के, कहूं चिन्ह चौबीस। जैनग्रन्थ में वर्णिये, जैसे जैन मुनीस । पाडी छंद। श्री आदनाथ के वैल जान, अजितेश्वर के हाथी महान संभव जिन के घोड़ा अनप, अभिनदन के बांदर सरूप। श्री समतनाथ के चकवा जान । श्रीपा प्रभुक कमल मान, सथिया सुपार्श्व के शोभवंत, चंदा के आधा चंद दिपंता नाक संयुक्त श्री पुष्पदंत वृक्ष कलप कही सीनले महंत,श्रेयांस नाथ के गैंडा देख, श्री वासु पूज्य के भैंसा रेख विमलेश्वर के सूवर बखान, सेही अनंत के कर प्रमान । श्री धर्मनाथ के वज्र दंड, प्रभु शांति नाथ के हिरण मंड। कुथु जिनके बकरा केहंत, मछली का अर प्रभु के लसन्त। श्रीमल्लिनाथ के कलसयोग. मनिसुव्रत के कछवा मनोगांचिनकमल श्रीनमिके कहत,शंख नोमनाथ के बल अनंत पारस के सर्प है जग विख्यात, सिंह सोहेवीर के दिवसरात॥ दोहा-चिन्ह बिंबपर देख यह, जानो जिन चौबीस । पौछी कमंडलु युक्त जे, ते बिंब जैन मुनीस ।। नहीं चिन्ह अरहंत की सिद्ध की कही अकाश। ज्ञानचंद प्रभुदरस से कटे कर्म की राल॥ नोट-२४ तीर्थंकरों के २४ चिन्ह जो हमने इस पुस्तक में लिखे हैं इन को सही समझ कर बाको के लेख भोसो अनुसार कर देने चाहिये इस का संशोधन हमने संस्कृत प्राकृत अन्यों के प्रमाण के साथ किया है।

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