Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 79
________________ जनबालगुटका मया माग शरीर में मातशक होनेसे. अधडा माराजाता है जवान ही मरजाता है: डीयाज प्रारे ही जवान मरते हैं पल रंडीवाजी दुनिया में सख्त ऐया है। . . .. . .(५) चोरी, किसी का धन नकब लगाकर (पंडा देकर) था. किसी के घर में पड़ कर किसी का धन तथा वस्तु ले । माना किली की जेब काट लेनी किसी का मोले मार लेना किसी का लेकर मकर जाना अमानत में खियानत करना किली के नाम झूट लिखना किसी के ऊपर. झूठी नालिश करनी किलो, को कम बोले देना दूसरे का माल जियादा तोल लेना किसी अनजान का बहु मूल्य धन थोड़ी कीमत में लेना चोरी का माल लेना यह सब चोरी है चोर का ऐतवार माता पिता भी नहीं करते सारी दुनिया में जोर का मुंह काला होता है अनेक राजा चोर को फांसी देदेते हैं । कैद कर देते हैं। . ... ६) खेटक नाम शिकार खेलने का है जीव तो मांस के व्यसनोमी मारते हैं खेटकं उस से अलग इस कारण से है कि जो पनी तवियत बहलाने खुश करने को तमाशा देखने के लिये किसी जीवको मारना यह खेटक है यानी जिसको पेसा बालग नावे कि दूसरे जानवरों को मार कर या मारते हुषों को देखकर अपनी तबियत बहलाया करे सुश हुवा करे यह संब खेटक है शिकार करते हुये तमाशा देखना या किसी को फांसी देते हुये कतल करते हुये अपनी तवियत खुशकरने के लिये, देखना., यह सय खेटक है फौज में नौकरी करनी दुशमनों को मारना या रहजनों करना हिंसा रूप पाप में शामिल है खेटक में नहीं जो आदमी या जानवर अपने को या अपनी स्त्रो धन्धों को मारने या खाने को आधे तव अपने ताई या अपने बाल पक्षों को बचाने के वास्ते उसको मारना उसका संहार करना यह खेटक नहीं व्यसन के मायने ऐब के है अपनी जान बचाना ऐप नहीं है। .. . ..(७) परनारी, परनारी का अर्थ जिस स्त्री के खाविंद हो उस के साथ मना तिल का नाम परस्त्री गमन है इसी कारण से रंडी को अलग लिखा है क्यों कि उसके मार नहीं परस्त्री के मायने दूसरे की जोक है रंडी किसी की जोक नहीं मगर सारी स्त्री ही परस्त्री में हो। तो फिर अपना ब्याह करना परस्त्री व्यसन में होजावे सो इसका मतलव यही है कि दूसरों की जोरूओं से रमने का ऐवं लगजानां जिसको यह ऐब लगजाता है वह अपनी स्त्री जोगा. घरघाट का नहीं रहता और जो वीर्य का खराब होना मोलाद पैदा करने के काबिल न रहना मावशक होजाना अंधडंग मारना जो ऐक रंडीबाजी में हैं वह भी इसमें हैं यह भलग इस वास्ते है कि रामजी में ।

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