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नैनवालगुटका प्रथम भाग ३ उहमादि कोई दोष लगाय तथा रसकी लंपटता से तथा प्रमाण से अधिक भोजन करना इत्यादि एपणा समिति के अतिचार है। . ___ ४ ममि तथा शरीरादि उपकरणों को शोवता से उठावना मेंलना अच्छी तरह नेत्रों से नहीं देखना तथा मयूर पिच्छिका से भले प्रकार झाडन पंछन नहीं करना । जलदो से करना इत्यादिक आदान निक्षेपणा समिति के अतिवार हैं।. ...
.५ अशुद्ध भूमि विषे तथा जीयों सहित भूमि विषे.जहां जोत्रों को उत्पत्ति होने का कारण हो ऐसी भूमि विषे मल मूत्रादिक्षेपना(डालना)इत्यादि प्रतिष्ठापनासमिति के अतिवार हैं जैन के मुनि इत्यादि दोषों को दूरकर पांचों समितिका पालनकरते हैं। ..
५ इन्द्रियदमन और बाकी दोहा। -स्पर्शन रसना नासिका, नयन श्रोत्र का रोध । षट्-आवशि मंजन तजन, शयन भूमि को शोध ॥३३॥ वस्त्रत्याग कचलौंच अरु, लघु भोजन इकबार !' दांतन मुख में ना करें, ठाडे लेय अहार ॥३४॥. . बरणे गुण आचार्य में, षट् आवश्यक सार।. . ते भी जानो साधु के, ठाइस इस परकार।। ३५ ॥ साधर्मी भविपठन को, इष्टछतीसी ग्रन्थ । ..
अल्पबुद्धि बुधजन रचो, हितमित शिवपुर पन्थ ।।३६ ।। ' अर्थ-१ स्पर्शन (त्वक्) २रसना,३ घाण, ४वक्षु, ५ श्रोत्र इन पांच इन्द्रियों को वश करना ।और १ यावज्जीव स्नान त्याग, र भूमि पर सोना, ३वस्त्रत्याग, ४ केशों का लौच करना, ५ एक वार लधु भोजन करना, ६ दांतन नहीं करना, खड़े माहार लेना सात तो यह और आवश्यक जो आचार्य के गुणों में वर्णन कर चुके हैं इस . पुकार २८ मूल गुण सर्व सामान्य मुनि आचार्य और उपाध्याय के होते हैं।
तीन गप्ति का प्रश्न उत्तर। .. .... - यदि यहां कोई यह प्रश्न करे कि पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति यह तेरह प्रकार के चारित्र पालन वाले जो हमारे दिगम्बर गुरु (मुनि) (साधू), उनके