Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 72
________________ जैनवालगुटका प्रथम भांग। अंथ आचार्य के ३६ मल गुण । दोहा। . ___ द्वादश तप दश धर्म युन, पाले पंचाचार। षट आवशिक त्रय गुप्ति गुण,आचारज पदसार ॥ १७॥ अर्थ-तप १२, धर्म १०, आचार ५, मावश्यक ६, गुप्ति । यह भाचार्य के ३६ मल गुण होते हैं । १२ तपादोहा। अनशन ऊनोदर करे, व्रत संख्या रस छोर ॥ . . . . विविक्तशयन आसन धरे, कायक्लेश सुठोर ॥१८॥ . “ प्रायश्चित धर विनय युत, वैयावत स्वाध्याय। : । ___ पनि उत्सर्ग विचार के, धरे ध्यान मन लाय ॥ १९॥... अर्थ-१ अनशन (न खाना),२ ऊनोदर (थोडासाखाना) ३ प्रतपरिसंख्यान, ४ रस परित्याग, विविकशय्यासन, ६ कायक्लेश, (यह छै प्रकार का बाह्य तप है। ७ प्रायश्चित्त, ८ पांच प्रकार का विनय ९ वैयाघृत्य करना. १० स्वाध्याय करना, . १९ ग्युत्सर्ग (शरीर से ममत्व छोड़ना)१२ ध्यान (यह छै प्रकार का अन्तरंग तप है)। १०धर्म (दोहा)। क्षमा मारदव आरजव, सत्य वचन चित्त पाग। . संयम तप त्यागीसरब, आकिंचन तिय त्याग ॥ २० ॥ . अर्थ- उत्तम क्षमा, २ मार्दव, ३ मार्जव, ४ सत्य,५ शौच, संयम, तप, ८ त्याग, ९ आकिंचन्य, १० ब्रह्मचर्य यह दश प्रकार के उत्तम धर्म हैं। . ६ आवश्यक ।दोहा। . . समताधर बन्दन करे, नानास्तुति बनाय) • प्रति क्रमण स्वाध्याय युक्त, कायोत्सर्ग लगाय ॥२१॥ .. भर्थ-५समता (समस्त जीवों में समता भाष रखना), २ बन्दना, ३ स्तुति (पंचपरमेष्ठी की स्तुति करना) ४ प्रतिक्रमण (लगे हुए.दोषों का पश्चाताप करना) ५ स्वाध्याय, ६,कायोत्सर्ग ध्यान करना यह छ आवश्यक हैं। .

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