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जैनवाल गुटका प्रथमभाग ।
और बारह योजन प्रमाण सब देश देशांन्तर को भस्म करके सत्र आधार भूत पर्याय को भस्म करता है प्रसिद्ध इष्टान्त डोपायन मुनि ||
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कार्माण-कार्माण शरीर उल को कहते हैं अष्ट कर्म संयुक्त हो यह निखालिस अनाहारक अवस्था में रहता है और सर्व जीवों के होता है ।।
चार कथा ।
आक्षेपिणी -- आक्षेपणी कथा उस को कहते है जो जिनमत में श्रद्धा बढ़ाये यह साधर्मी पुरुषों के समीप करनी चाहिये ॥
२ विक्षेपिणी - विक्षेपिणी कथा उस को कहते हैं जो पाप पंथ (कुमार्ग) का खंडन करे परवादियों के साथ करनी चाहिये ||
३ संवेगिनी — संवेगिती कथा उस को कहते हैं जो धर्म में अनुराग (प्रीति) घढावे या धर्म रुचि बढावने वास्ते करे --
४ निर्वेदिनी - निर्वेदिनो कथा उस को कहते हैं जो वैराग्य उपजाये इस कथा को विरक्त पुरुषों के निकट वैराग्य चढायवावास्त करे-
६ प्रकार के पुङ्गल (अजीव ) ॥
प्रकारका जो दीख सके और तीन प्रकारका जो दीख नहीं सकता ॥
३ प्रकारका दीखने वाला पुङ्गलं
। १ स्थूल स्थूल, पत्थर लकड़ी वगैरा जो टूटकर फिर जुड न सके। २ स्थूल स्वर्ण चांदी जल दुग्ध वगैरा जो अलग होकर फिर मिल सके ॥
३ स्थूल सूक्ष्म जो नजर तो आवे पर हाथ से पकड़ा नहीं जासके जैसे छाया धूप. रोशनी वगैरा ॥
तीन प्रकार का न दीखने वाला पुद्गल ।
१ सूक्ष्म स्थूल खुशबू बदबू आवाज वगैरा ॥
२ सूक्ष्म कर्म वर्गणा ।
·३ सूक्ष्म सूक्ष्म परमाणु ॥