Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 84
________________ ર नवलगुटका प्रथम भाग | के माइने हो खाने योग्य नही अपनी जान बचाने को बीमारी दूर करने को दवा खाना अभक्ष्य नही जहर दवा भी है दवा का साना समस्य नहीं एक वस्तु में भनेक गुण होते हैं सारे हे (त्याज्य) नहीं होते जिसे कबज हो उस के वास्ते अफीम का खाना जहर है जिसे दस्त लग रहे हो उसके वास्ते अफोम का खाना अमृत है सो जहर खाने के काबिल नही दवा खाने के काबिल है | (१९) तुच्छ फल -- तुच्छ फल नाम जरा से जामते फल (निहर) का है यह अभक्ष्य इस वास्ते है कि अनेक फल ऐसे है जो छोटे जहरीले होते हैं सिरफ बड़े हो कर खाने योग्य होते हैं अगर उन छोटों को खावेतो खान वाला सखन विमार होजाता है ऐसे अनेक फलों का हाल यूनानी हिकमत की किताब में लिखा है, मिठ्ठा हूँ जिसको कौला या हलवा कद्दू वाज मुलकों में पेठा या कांसी फल भी कहते हैं यह बहुत छोटा निहर कच्चा नही खाना विमारी करता है बहुत छोटा जरासा ही अलमी का फल भी बिमारी करता है एसे अनेक फल हैं इस वास्ते तुच्छ फलको अमश्य कहा है, परन्तु यहां इतनी बात और समझ लेनीकि जो फल बड़े होकर खाने काविल नहीं रहते जैसे गुवारे की फली लोवियेकी फली भिडी घियातोरी टोंडे यह छोटे कच्चे खाना तुच्छ में शामिल नहीं यह छोटे ही भक्ष्य है बड़े होकर अभस्य यानी खाने काबिल नही रहते ॥ (२०) तुषार नाम बरफ का है जो आसमान से गिरती है वह भमक्ष्य है वह जह रीली है और उसमें अनेक जीव अल कायके दब कर मरजाते है इस वास्तेवह अमस्य है परन्तु यहां इतनी बात औरसमझनोकि कलको थरफ जहरीली नहीं होती है न इसमें कस जीव गिर कर मरते हैं इस वास्ते यह अमक्ष्य नहीं, छोटे प्रन्थोंमें सिरफ नाम होते हैं इनकी तरारीह बड़े ग्रन्थों में होती है कि वह अमस्य यानो खाने योग्य क्यों नहीं ॥ (२१) चलित रस मोसम गरमी में जिस भोजन पर फूही (ऊलण) भाजावे बदबू कर जावे सड़जावे उस का जायका बदल जावे यह सब चलित रसमें हैं जैसे बूसी हुई रोटी तरकारी फूहो आई हुई दही सड़ा गला फल इनके खानेसे अनेक बीमारी होती हैं इनमें अनन्ता अनन्त सूक्ष्म जीव (जिरम) पैदा होजाते हैं ऐसी सब वस्तु अभक्ष्य है | नोट- जो चीजां खमीर उठाकर बनाई जाती हैं जैसे मैदे को घोल कर समीर उठा कर जलेबी बनाते हैं, पीठी को कई दिन तक रख कर खमीर उठाकर खट्टी कर उस की उडदी बनाते हैं । बेर खड़ा कर उसका खमीर उठाकर खमीरा तमाखु बनाते है । इत्यादिक वस्तु भी चलित रस में है ॥ (२२) मक्खन दही से या दूध से निकल कर अलहदे कर के खाना अभक्ष्य है दही में मिला हुआ जैसे दही का अधरिङका पीना यह भ्रमस्य नदी है ॥ इति

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