Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 89
________________ जैनवाल गुटका प्रथममाग : श्लोक! जुगादिवृषभोदेवः हारकः सर्वसंकटान्। रक्षकःसर्वप्राणानां, तस्माज्जुहारउच्यते ॥ . अर्थ-जुहार शब्द में तीन अक्षर है १ जु २ हा ३ र । लो जुसे मुराद है जुग के आदि में भए जो श्रीदेवाधिदेव ऋषभदेव भगवान ओर,हा, से सर्व संकटों के हरने वाले और र से कुल प्राणियों की रक्षा करने वाले उन के अर्थ नमस्कार हो । अर्थात् जव कभी अपने से बड़े या घरावर केसे मिले तो मुलाकात के समय 'जुहार कहने से यह मतलब है कि श्रीऋषभदेव जो इन गुणों कर के भूषित हैं उन को हमारा और तुम्हारा दोनों का नमस्कार हो। और वह कल्याण करता परमपूज्य हमाप और तुम्हारा दोनों का कल्याण करें। और दूसरे का अदब करना मस्तक नवा कर उस को ताजीम करना यह इस का लौकिक मतलब है ॥ पांच प्रकार का शरीर। -औदारिक र वैक्रियिक ३ आहारक ४ तैजस ५ कार्माणः । :... मौदारिक-उदारकार्य (मोक्षकाय) को सिद्ध करै याते इस को औदारिक कहिये तथा उदार कहिये स्थल है याते औदारिक कहिये यह शरीर मनुष्य और तिर्यंचों के होता है । : वैक्रियिक अनेक तरह की विक्रिया करे आकृति बदल लेवे जो चाहे बन जावे मोति पर्वत आदि में पार हो जा सके उस को क्रियिक कहते हैं यह देव और नारकियों के होता है। आहारक-यह शरीर छठे गुण स्थान वर्ती महामुनीश्वरों के होय जब पंद वा पदार्थ में मुनि के संदेह उपजे तव दशमाद्वार (मस्तक) से २४ व्यवहारांगुल से १हाथ परिमाण वाला चन्द्रमा की किरणवत् उज्ज्वल होय सो केवली के चरण कमल परसि आवे तव तमाम शक रफा होजाय ॥ तैजस-तैजस शरीर दो प्रकार है एक तो शुभ वैजल और दूसरा अशुभ तेजस शुभ तैजस तो शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव के होय है किसी देश में जब पीड़ा उपजे तथा दुःख उपजे उस समय दाहिनी भुजा से शुम तैजस प्रकट होय और उस पीडा को दूर करे और अशुभ तैजस मिथ्याइष्टि जीव के कषाय के, उदय से प्रकट होता है .

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