Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 33
________________ जैनबालगुटका प्रथम भाग। सकता पस इस स्थान पर तिर्यंच शब्दका अर्थ कुटिल परिणामी है क्योंकि इन ६२ लाख योनि के जीवों के परिणाम कुटिल होते हैं । ५स्थावर। त्रसके सिवाय बाकी के पाचों कायके जीव पांच स्थावर कहलाते हैं। नोट-स्थावर उसको कहते हैं जो चल फिर नहीं सक्ते और जो चल फिर सकते है वह प्रस कहलाते हैं। .प्रकारके वस। बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय । नोट-एक इन्द्रियके सिवाय वाकी सर्व जीव अस कहलाते हैं। ६ काय। १ पृथ्वाकाय, २ अप (जल) काय, ३ तेज (अग्नि) काय, ४ वायुकाय, ५ बनस्पतिकाय, ६ सकाय॥ नोट-संसारी जीव यह छ प्रकार के शरीर धारण करते हैं। पृथिवीकाय । जो जीव चलने फिरने उहने वाले सूक्ष्म या मोटे पृथिवी पर रहते हैं या सांप आदि जमीन में रहते हैं वह पृथ्वीकाय में शामिल नहीं हैं जिन जीवों का शरीर खास मट्टी या पत्थर वगैरा ही है जो चल फिर नहीं सकते घही जीव पृथिवीकाय कहलाते हैं । . जलकाय। जो जीव चलने फिरने वाले मच्छो वगैरा बडे या सूक्ष्म पानी में रहते हैं वह जलकाय में शामिल नहीं है जिन जीवोका शरीर खालपानो ही है जो चल फिर नहीं सकते वह जीव जलकाय कहलाते हैं, जल का नाम अप भी है इसलिये जलकाय के जीव अपकाय भी कहलाते हैं । . अग्निकाय। । अग्निकाय के वह जीव हैं जिनका शरीर खास अग्नि ही है, वह पल फिर नहीं सकने, अग्नि का नाम तेज भी है,इसलिये अग्निकाय के जीव तेजकाय भी कहलाते हैं।

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