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जनवालगुटका प्रथम भाग) ". दातार को नवधा भक्ति। .. १ प्रति ग्रह कहिये मुनिको तिष्ठतिष्ठ तिष्ठ ऐसे नीन बार कह खडा रखना २ मुनिको उच्चस्थान देवे ३ चरणों को प्रासुक जलकर धोवें ४ पूजा करे अर्घ चढावे ५ नमस्कार करे ६ मनशुद्ध रक्खे ७वचन विनय रूप बोले काय शुद्धरक्खे९शुद्ध आहार देवे।
यह नव-प्रकार. की भक्ति दातार की है दातार वाले को यह नव प्रकार की भक्ति करनी चाहिये ॥ . . . "
. दातार के सप्त गण। १दान में जाके धर्म का श्रद्धान होय, २साधु के रत्नत्रयादिक गुणों में अनुराग रूप भक्ति होय, ३ दान देने में आनंद होय ४ दानकी शुद्धता अशुद्धता का ज्ञान होय,५दान देने से इस लोक परलोक संबंधी भोगाकी अभिलाषा जिसके नहीं होय ६ क्षमावान् होय ७ शक्ति युक्त होय ऐसे ७ गुण सहित दान देना ॥. .
दातार के ५ आभूषण। .. १ आनन्द पूर्वक देना, २ आदर पूर्वक देना, ३प्रियवचन कह कर देना, ४ निर्मल भाव रखना, ५ जन्म सफल मानना ।।
दातार के ५ दषण। ' . ' बिलम्ब से देना,विमुख होकर देना, दुर्वचन कहकर दना, निरादर करके देना, देकर पछतानां यह दातार के ५ दूषण है दातार में यह पांच दोष नहीं होने चाहिये ।। .. . : ....: : श्रावक के १७ नियम।
१ भोजन, २ सचित्त वस्तु,३ गृह, ४ संग्राम, ५ दिशांगमन,
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