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जैन बालगुटका प्रथम भाग। ५ आचार और ३गुप्ति । दोहा। दर्शन ज्ञान चरित्र तप, बीरज पंचाचार। गोपे मन बचन काय को, गिणछतीस गणसार ॥२२॥
मर्थ-। दर्शनाचार, २ ज्ञानाचार, ३चरित्राचार, ४ तपाचार, ५ वीर्याचार, यह पांच आधार है और सर्वसावध योग जो पाप सहितमन, वचन, काय, की प्रति , उसका रोषना सो गुप्ति है अर्थात् १ मनोगप्ति मन को वश में करना, १ वचन गप्ति (वचनको वश में करना),३ काय गुप्ति(शरीर को वशम करना)यहतीन गुप्तिहैं।
तीन गुप्ति के अतिचार। १ रागादि सहित स्वाध्यायमें प्रवृति तथा अंतरंग में भशुभ परिणाम इत्यादि मनोगन्ति के भतिचार हैं।
२ द्वेप से तथा राग से तथा गर्व से मौनधारण करना इत्यादि बचन गुप्ति के भतिधार है।
३ असावधानी से काय की क्रिया का त्याग करना तथा एक पैर से खड़ा रहना तथा जीव सहित भूमि में तिष्ठना तथा गर्वधको निश्चल तिष्ठना तथा शरीर मैं ममता सहित कायोत्सर्ग करना तथा कायोत्सर्ग के जो ३२ दोष हैं उनमें से कोई दोष लगावना इत्यादि काय गुप्ति के अतिवार हैं जैन के मनि इत्यादि दोष टार तीन गुप्ति का पालन करते हैं । यह आवार्य के ३६ मूल गुण कहे। अथ उपाध्याय के २५ मूल गुण । दोहा।
चौदह पूर्व को धरे, ग्यारह अंग सुजान ।
उपाध्याय पच्चीस गुण, पढ़े पढ़ावे ज्ञान ॥२३॥ मर्थ-उपाध्याय ११ भंग १४ पर्व के धारी होतेहै इनको आप पढे औरोंको पढ़ावें।
११ अंग। दोहा। प्रथम हि आचारांग गण, दूजा सूत्र कृतांग । स्थानांग तीजा सुभग, चौथा समवायांग ॥२४॥ व्याख्याप्रज्ञप्तिपञ्चमो, ज्ञातृकथा षट् आन।