Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 29
________________ ७ जैनवालगुटका प्रथम भांग। १४ नटिये। गंगा २ सिंधु ३ रोहित ४ रोहितास्या ५ हरित ६ हरिकांता ७सीता ८ शीतोदा ९ नारी १ . नरकांता ११ सुवर्णकला १२ रूप्य कूला १३ रक्ता १४ रक्तोदा॥ ६ कुण्ड (द)। १पद्म, २महापद्म,३ निगिच्छ ४केसरी ५ महापुण्डरीक ६ पुण्डरीक ७ ईति (आफतें) (मुसीवत)। १ अतिवृष्टि २अनावृष्टि (वर्षा बिलकुल न होना) ३मूसक (अनंत मूसे पैदा होकर तमाम खेती खा जावें) ४ टिड्डी (टिड्डी खेती खा जावें ।५ सुवा (अनंत सूवा पदा होकर खेती खा जावें ) ६ आपका कटक (सेना)७ परका कटक ॥ ५ अनुत्तर विमान। विजय, वैजयंन, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्धि । १६ स्वर्ग। १ सौधर्म, २ ऐशान,३सानत्कुमार, ४ माहेंद्र ब्रह्म,६ब्रह्मोतर,७ लांतव, कापिष्ट,९ शुक्र १० महाशुक्र,११ सतार,१२सहलार, १३ आनत, १४ प्राणत, १५ आरण, १६ अच्युत ॥ . ७नरक। १ रत्नप्रभा (धम्मा), २ शर्कराप्रभा (वंशा', ३ बालुकाप्रभा (मेघा), ४ पंकप्रभा (अंजना), ५ धूमप्र का (अरिष्टा), ६तभप्रभा (मघवी),७ महातम प्रभा (माघवी)।

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