Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 56
________________ जैनबालगुटका प्रथम भाग। समझोगे क्योंकि यह उन जातियों के चिन्ह हैं इसी तरह जब तुम कहीं सफर.म रेल में सराय में किसी जगह किसी को जल छान कर पोता देखोगे तो तुम फौरन यह समझोगे कि यह तो कोई जैनी है सो छान कर पानी पीना हमारा चिन्ह है, देखो इस बात को तो अन्यमती भी स्वीकार करें हैं दयानंद स्वामीने जो प्रति सत्यार्थ प्रकाश की पहले पहल छपवाई थी उसके समुल्लास १२ अवाव १७५ में यह लिखा ह कि पानी छान कर जो जैनी पोते है यह बात जैनियों में बहुत मच्छी है और तुलसीदास जी का यह कथन है कि पानी पोवे छान कर गुरू बनाये जानकर और मनुस्मति अध्याय ६ श्लोक ४६ में मनुजी यह लिखते हैं कि बाल और हडडी वाले जानवरों के इलावे और छोटे छोटे जीवों की रक्षा भर्थ भी जमीन पर देख कर पावरक्खो पानी छान कर पीवो ॥ इस लिये हर जैनी मरद स्त्री पालक को अपने धर्म और कुल के चिन्ह के असूल के मुताविक हमेशा पानी छान कर ही पीना चाहिये छान कर ही स्लान करो छान करही करला करो छान कर हो हाथ मूह धोवो,वगैरे छाना जल रसोई वगैरा में कभी भी मत वरतो तमाम जैनियों को हमेशा हर मुलक में जलछान कर ही वर्तना चाहिये । अथ छने हुए जल की मियाद॥ छने हुए जलकी मियाद । महूर्त तक है छने हुए मैं लौंग काफूर, इलायची काली मिरव या कसायली वस्तु कट कर डालने से इस चर्चे हुए जलकी मियाद दोपहर की है छान कर भोटाये हुए (उवाले हुए) जल को मियाद माठ पहर की है। इस के बाद फिर उसमें सन्मर्छन जीध पैदा होजाते हैं। नोट-मुहर्त रघड़ी का होता है देखो ममर कोष १ कांड कालवर्ग श्लोक ११,१२, तेतु विशद होरात्र मर्थ तीस महूर्तका दिन रात होता है पस एक मुहुर्त दो घड़ी (४८ मिनट) का, दो पहर छै घंटे के, एक दिन रात्रि २४ घंटे का होता है। - . . अथ रात्री भोजन त्याग। . श्रावक की पनवी क्रिया गत्री भोजन त्याग है सो रात को भोजन करना या रात्री का पका हुमा भोजन करना या जो बगैर निरखे देखे भन्यमती भोजन पकावे जैसेधाज, बाज हलवाई मुदत का पडी पुरानी मैदा 'कोड़े सहित ही की पूरी कचौरी भावि पकाते हैं भनेक ब्राह्मण ढाबोंम (वासा)में मौसम गरमी में पुराना पोरियों का सुरसरी,वाला मादासुरसरी सहितही पका लेते हैं वगैर निरले पुराने चावल कोडे ।

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