Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 37
________________ जैन बालगुटका प्रथम भाग। अथ ४ अनुयोग। १ प्रथमानुयोग, २ करणानुयोग, ३चरणानुयोग,४ द्रव्यानुयोग। १ प्रथमानुयोग नाम पुराणरूप कथनी (तवारीख) (History) का है जितने जिनमत के पुराण, चरित्र, कथा है जिनमें पुण्य पाप का भेद दरशाया है वह सर्व प्रथमानुयोग की कथनी है ॥ २ करणानुयोग नाम जुगराफिये (Geography) का है जो कुछ अलोका काश और लोकाकाश आदि तोन लोक में द्वीपक्षेत्र समुद्र पहाड दरया स्वर्ग नरक आदि. की रचना है सब का वर्णन करणानुयोग में है ॥ ३ धरणानुयोग नाम आचरण,चारित्र (क्रिया) (हुनर) (Arts)का है ग्रहस्थियों की जितनी क्रिया आवरण है और गृहत्यागी जो मुनि उनके चारित्र आचरणका कुल वर्णन घरणानुयोग में है ॥ '४ द्रव्यानुयोग नाम पदार्थ विया (इलमतवई) (Soience) का है दुनिया में जो जीव (रह) (Soul),अजीव (मादा) (Matter) पदार्थ हैं उन के गुण खासियत ताकत का कुल वर्णन द्रव्यानुयोग में है ॥ नोट-यह हमने चारों अनुयोगों का मतलब चालकों को समझाने को बहनही संक्षेप रूपलिखा है इस का विशेष वर्णन छोटा रत्न करंड १५० श्लोक वाला और वडा रत्नकरंडजो ताड पत्रोंपर मैसूर में भट्टारकजी के पास है आदि प्रयोसे जानना ।। इन चारों अनुयोगमें वोह कथनी है जिसको वाकफीयतसे इस जोवका कल्याण हो अर्थात् शानकी वढवारी होनेसे यह जीव पाप कार्यको छोड कर धर्मकार्य में प्रवते ॥ तीनलोक में सब से बड़ी सडक ।। इन तीन लोक में आने जाने को पाताल लोक के नरक से लेकर उर्द्ध लोक के सर्वार्थसिद्धि तक एक प्रसनाली नामा सडक है अस जीव रूपी मुसाफिर हर दम उस पर गमन करते हैं जैनमत रूपी रास्ता बताने वाला कहता है कि उन १४ गुण स्थान नामा पौड़ियों के मार्गले ऊपर बांदने की तरफ को जाओ, नीचे नरफ रूपी महा अंधेरा खाडा है उस में गिर पडोगे, और मिथ्या मत रूपी राहवर कहता है कि अगर इस दुनिया की चौरासो लाख यूनो रूपी घरों की सैर कानी है तो नीचे को जाओ ऊपरको मत जाओ ऊपर को जाओगे तो मक्त रूपी पिंजरे में फंसजाओगे जहां से इस दुनिया में फिर न आसकोगे, वहां खानापीना चलनाफिरना जोलनातक कुछभी भवसिर न आवेगावलकि यह अपना सोहना मनमोहना शरीरभी खोबैठोगे।

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