Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 53
________________ जैनवालंगुटका प्रथम भाग। - करुणादान। जो दुःखित बुभुक्षित को दयाभाव कर दान देना सो करुणा दान है, परंतु इस में इतना और समझना कि नीति में ऐसा लिखा है कि पहले खेश.पीछे दरवेश' भगर कोई अपनी बहन, भानजी, चाची, ताई, भावज, भूषा, मामी आदि या भाई भतीजे वाचा, ताऊ, बाबा, बाबाका,माई, फूफड, मामा, बहनोई मादि रिश्तेदार या कुटुम्यो तंग दस्त हो तो पहले उन का हक है पहले उनकी मदद करे फिर दूसरों की करे। लंगडे लूले अन्धे अपाहज धीमार कमजोर भूखे काल पीड़ितों को भोजन खिलाना, शरद ऋतु में इनको वस्त्र देना बीमारों को दवाई बांटना तालिबइल्मों को पुस्तके तथा वजीफा देना जिस गृहस्थीकी आजीविका बिगड गई हो या बेरोजगार फिरता हो उस की सही शिफारश कर उस को नौकर रखवा देना या पूंजी देकर उसकी कुछ आजीविका का जरिया बना देना, लेन देन के मामले में ऐसा माव रखे कि जिस प्रकार कुम्हार भावे में वर्तन चढाता है वह सारे ही सावत नहीं उतरते कोई फूट भी जाता है । कोई अधपका भी रह जाता है, इसी प्रकार जितनी आसामियां हैं सबसे रुपया एकसां वसूल नहीं होता कमजोरों को अधपके वर्तन समान समझकर ब्याज छोड देना चाहिये । मल की बिना ब्याजी बहुत छोटी सी आसान किसते कर देनो चाहिये जो वह आसानी से दिये जावे ताकि उसका पाल पच्या मखान,मरे। जो आसामी बहुत गरीब तंग दस्त होजावें उनकी नालिश करके उन्हें फै न करवावे न उनकी कुडकी करवावे न उनकी नालिश करे । उन्हें फूटा भांडा , समझ कर उनको करजा माफ कर देना चाहिये। यह बड़ा भारी धर्म है। निर्धन विधवा स्त्रियों की माहवारी तनखा बांध देनी चाहिये । जब तक वह जीवें । धगैर मांगे अपने हाथ से उनको पहुंचा दिया करे। जिनके ऊपर झूठा मुकदमा पड़जावे उनकी सही शिफारिश व उगाही देकर उनको बचावे किसी.का. मात्मा नहीं सतावे कोई कुछ मांगने आवे तो उसे मानछेदक बचन नहीं कहे । देखो केवली की वाणी में यह उपदेश है कि जैसे पांचों से लुंजा चलने की इच्छा करे गंगा बोलने की इच्छा करे, अंधा देखने की इच्छा करे तैसे मूढ प्राणी धर्म बिना सुख की इच्छा करे हैं । और.जसे मेघ बिना वर्षा नहीं, वीज बिना अनाज नहीं, तैसें धर्म, पिना सुख नहीं। और जैसे वृक्षके जड़ है । तैसे सर्व धर्नामें दया धर्म मूल है और दयाका मूर्ल दान है। दान समान धर्म नहीं। जिन्होंने पीछे दान नहीं दिया यह भवरंक भये मांगते फिर हैं। उनके न कुछ यहां है म भागे पायेंगे । और जो धन पाकर दान नहीं देते उनके यह है परन्तु मागे नहीं। जो गांड में लाये थे वोह भो यहाँ खो खालो हाथ

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