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[ १४ ) हमें ऐसा निर्णय करने में इस कारण से भी सहायता मिली है कि ११ वीं शताब्दि के पहले के किन्हीं दिगम्बर आचार्यों ने इन नामों का उल्लेख नहीं किया है। श्वेताम्बर परम्परा में यद्यपि उमास्वाति यह नाम आया है पर उसका विशेषण वाचक है न कि गद्धपिच्छ और दिगम्बर परम्परा में ११ वीं शताब्दि के पूर्व मात्र गद्धपिच्छ नाम का उल्लेख मिलता है, इसलिये गृद्धपिच्छ उमास्वाति या गृद्धपिच्छ उमास्वामी इस नाम के न तो कोई आचार्य हुए और न वे तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता ही माने जा सकते हैं। ___ अब देखना यह है कि आखिर तत्त्वार्थसूत्र की रचना किसने की। पूर्वोक्त आधारों से हमारे सामने ऐसे दो काम शेष रहते हैं जिन्हें तत्त्वार्थसूत्र का कर्ता माना जाता है-एक गृद्धपिच्छ और दूसरे वाचक उमास्वाति । दिगम्बर आचार्य गृद्धपिच्छ का तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता रूप से उल्लेख करते हैं और श्वेताम्बर आचार्य वाचक उमास्वाति का। यह माना जा सकता है कि दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता गृद्धपिच्छ रहे हों और श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता वाचक उमास्वाति रहे हों पर यहाँ मुख्य विवाद इस बात का नहीं है मुख्य विवाद इस बात का है कि सर्व प्रथम मूल तत्त्वार्थसूत्र की रचना किसने की गृद्धपिच्छने या वाचक उमास्वाति ने। ___ इस समय हमारे सामने तत्त्वार्थसूत्र की दोनों परम्पराओं की दृष्टि से दो आद्य टीकाएँ उपस्थित हैं-एक सर्वार्थसिद्धि और दूसरा तत्त्वार्थाधिगम भाष्य । इन दोनों की स्थिति समान है। इन्हें देखकर यह जान सकना कठिन है कि अन्य आचार्य के द्वारा बनाये गये ग्रन्थ पर ये दोनों टीकाकार टीका लिम्व रहे हैं या स्वयं बनाये गये ग्रन्थ पर ये टीका लिख रहे हैं। एक कर्तृकपने की सिद्धि के लिये 'वक्ष्यामि, निर्देक्ष्यामः' इत्यादि जो प्रमाण तत्त्वार्थाधिगम भाष्य में