Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 18
Author(s): Jinvijay, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Catalouge of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Pt. XVIII (Appendix)
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1715/7460 (2) पृथ्वीधरसाधुकारित-चैत्यस्तोत्रम् ।
OPENING :
श्रीपृथ्वीधरसाधुना सुविधिना दीनादिषूद्दा निना, भक्तश्रीजयसिंहभूमिपतिना स्वौचित्यसत्यापिना । अर्हद्भक्तिपुषा गुरुक्रमजुषा मिथ्यामनीषामुषा, सच्छीलादिपवित्रितात्मजनुषा प्रायः प्रणश्यद्रुषा ॥१॥ नैका: पौषधशालिकाः सुविपुला निर्मापयित्रा सता, मन्त्रस्तोत्रविदीर्णलिङ्गविवृतश्रीपार्श्वपूजायुजा। विद्य न्मालिसुपर्वनिमितलसद्देवाधिदेवाह्वयख्यातज्ञाततरुहप्रतिकृतिस्फूर्जत्सपर्यासृजा ॥२॥
त्रि:काले जिनराजपूजन विधि नित्यं द्विरावश्यक, साधौ धार्मिकमात्रकेऽपि महतीं भक्ति विरक्ति भवे । तन्वानेन सुपर्वपौषधवता सार्मिकाणां सदा, वैयावृत्त्यविधायिना विदधता वात्सल्यमुच्चैमुदा ॥३॥
श्रीमत्सम्प्रतिपाथिवस्य चरितं श्रीमत्कुमारक्षमापालस्याप्यथ वस्तुपालसचिवाधीशस्य पुण्याम्बुधेः । स्मारं स्मारमुदारसम्मदसुधासिन्धूमिषून्मज्जता, येय: काननसेचनस्फुरुदुरुप्रावृड्भवाम्भोमुचा ॥४॥
सम्यग् न्यायसजितोऽजितधनैः सुस्थानसंस्थापितैये ये यत्र गिरी तथा पूरवरे ग्रामेऽथवा यत्र ये। प्रासादा नयनप्रसादजनका निर्मापिताः शर्मदास्तेषु श्रीजिननायकानभिधया सार्द्ध स्तुवे श्रद्धया ।।५।।
पञ्चभिः कुलकम् ।
श्रीमद्विक्रमतस्त्रयोदशशतेष्वब्देष्वतीतेष्वथो (थ). विंशत्याभ्यधिकेषु (१३२०) मण्डपगिरौ शत्रुञ्जयभ्रातरि । श्रीमानादिजिन: १, शिवाङ्गजजिनः २, श्री उज्जयन्तायिते, निम्बस्थरनगेऽथ तत्तल वि श्रीपार्श्वनाथ:श्रिये ३ ॥६॥
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