Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 18
Author(s): Jinvijay, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. (Jaipur-Collection)
जहां की सैली देखि के, हिय मैं हर्ष न माय । षट्मन्दिर जिनराज के, वष उद्योत लखाय ॥७॥ ग्रन्थ सूक्तमुक्तावली, देखि हियो उमगाय । करौं वचनिका तास की, बालबोध सुखदाय ॥८॥ ता पीछे पण्डित सही. धनजीमल इहां प्राय । तिनने बहु प्रेरन करी, करो वचनिका जाहि ॥९॥ तब हमने भाषा करी, अलप बुद्धि हम जांनि । पण्डित मति हसियो मुझे, मो परि प्रीति सुठांनि ॥१०॥
॥ सवैया ३१॥
सुखद अनूप ग्रन्थ सूक्तमुक्तावली पन्थ, जामैं है सुतंत्र ऐसो भाषा निरभयो है। दरशन शुद्ध होत दूरि दुरबुद्धि होत बुद्धि रिद्धि वृद्धि होत........।
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भ्रमत मत जाहि बालक हु बोध पाई, पद आप वर्ण लाय कर्ता काडि लयो हैं ॥ ११ ॥ रस युग सराग ससि (१८३६) संवत सुमास वर, जेठि कृष्ण दोजि वार सुरगुरु मानिये। दिवस सुयाम दोय गये ग्रंथ पूरो होय, ताही को अभ्यास करै सामि जांनिये। धर्म ही त ऋद्धि होतं वृद्धि होय धर्म ही ते, धर्म ही ते सिद्धि होय पाही चित्त ठानिये। पढो पढ़ावो याहि सूनो सुनावो याहि, लिखो लिखावो याहि धरम भाव प्रानिये ॥ १२ ॥
॥ दोहा । भई वचनिका ग्रन्थ की, पूरी सरस नवीन । वक्ता श्रोता सुख लहो, पढत सुनत चित दीन ।।१३।।
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