Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 18
Author(s): Jinvijay, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur

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Page 612
________________ Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Pt. XVIII (Appendix) 527 3023/10049 (1) रघुनाथतोत्र OPENING: ॥ श्रीगणेशाय नमः ।। सीतापते ! दशरथात्मज ! देव ! देव ! राजीवलोचन ! विभो ! जगदेकनाथ ! सत्यस्वरुप ! रघुनन्दन ! देवमूर्ते ! मा देहि राम ! जननीजठरे निवासम् ॥१॥ इन्दीवराशितरुचे ! रविवंशदीप ! ब्रह्माण्डकोटिरचिताखिलरोमकूप ! भक्त्यावनोयधृतमानुष दिव्यदेह ! मा देहि राम ! जननीजठरे निवासम् ।।२॥ CLOSING : लङ्काविदाहक ! सुरारिमदापहार ! संक्रन्दनादिसुरवृमनमोक्षकार । शान्तस्वभावजननीवन दिव्यदृष्टे । मा देहि राम ! जननीजठरेनिवासम् ।।१०।। रामस्य पद्य दशक रचितं द्विजेन, संसारकष्टशमनं तु महेश्वरेण । प्रात: पठेदनुदिनं मनुजः स्वदाहसंसारसौख्यमतुलं लभते च मोक्षम् ॥११॥ COLOPHON इति श्रीगौडमहेश्वरविरचितं रघुनाथस्तोत्र सम्पूर्णम् । 3048/9784. वर्णेश्वरीतोत्र श्रीगणेशाय नमः OPENING : मूलाधारे वारिजपत्र चतुरंसे वंशं शंसं, Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli

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