Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 18
Author(s): Jinvijay, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. (Jaipur Collection)
COLOPHON:
OPENING:
उपाध्याय सिद्धान्त पाठकारक प्रवीना प्रति ।
निज सिद्ध रु साधन करत, साधु परम मंगल करण । मन वचन काय लव ल्याय, नित भागचंद वन्दत चरण ॥२॥
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॥ छप्पै ॥
गोपाचल के निकट सिंधिया नृपति कटकवर, जैनीजन बहु वसह जहां जिनभक्ति भाव भर ।
तिन मैं तेरहपंथ गोष्ठ राजत विशिष्ठ अति, पार्श्वनाथ जिन धाम रच्यो जिन सुभ उतंग अति
तहां देश वचनिका रूप यह, भागचंद रचना करिय |
जयवंत होउ सतसंग नित, जा प्रसाद बुधि विस्तरिय || ३ ||
Post-colpohou : मीति पोस शुक्ला ३ शनीश्चरवार संवत् ४१ का मैं लिखयी जयनग्र मध्ये सुवालाल सरावगी ने शुभमस्तुः ॥ ई शास्त्र की नीछरावल सुवालालजी भरपाई लिछमीनारायण मीश्र सु ।
॥ दोहा ॥
संवत्सर गुनईससे, द्वादश ऊपर धार (१९१२ ) ।
दोजि कृष्ण आषाढ़ की, पूर्ण वचनिका सार ||४||
इति श्रीउपदेश सिद्धान्तरत्नमाला नांम ग्रन्थ की वचनका समाप्त भई ।
1948 / 1880 सूक्तिमुक्तावली - सभाषावचनिका
अथ सूक्तमुक्तावली संस्कृत ग्रंथ की छंदबंद देशभाषामयवचनिका लिखीये है । तहां प्रथम ही पंचपरमेष्ठी कू नमस्कार करिये है ।
॥ छन्द छप्पे ॥
करत घाति गरण घाति प्राप्त गुरण चारि महोत्तम वसु गुरण मंडित सिद्ध बुद्ध गुण अमल जगोत्तम ।
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