Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 18
Author(s): Jinvijay, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
View full book text ________________
494
Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. (Jaipur-Collection)
OPENING :
COL OPHON:
COLOPHON :
OPENING :
Jain Education International
1762/11605. महावीरस्तोत्र
॥ ६० ॥
कल्लारणाबलि वल्लरीण उल्लासि महल्लय, पुक्खलवट्टय मेहतुल्ल तिहुरण वच्छल्लय । निज्जिय दुज्जय मोहमल्ल दुल्ल लिय महोभर, बंभरणवाडि जिरिंगद वीर संधुरिणसु सुहंकर ॥१॥ बंभरण खत्तिय वइस सुद्द अठारस बन्ना, सेव पवन्ना तुज्झ वीर न करंति अवन्ना । आवई जत्त महसवच्छ वित्था रइ निम्मल, नियम अभिग्गह सहिय नेवज्ज कुसुमफल ||२||
भगवा
पंथ वावि विसमा पासरणय, लग्गइ लोइ लोइ न टंक जत्त ते वज्ज समारय ।
तुह माहप्पइ मीरण जेम गालिय ते सवि
तिम मह दुम्ह कठिण कम्म तु टालिसु भवि भवि ||२४||
इय निम्भर भत्तिब्भरेण लेसिहि मय संधुय,
बंभरणवाडि जिरिंगद वीर महिमा प्रब्भुब्भूय ।
दिउ मज्झ सामी सुप्पसन्न सिरि सोमसुंदर जस वहतां तां तुह प्रारणा सिरिमि गुरु रयरगसेहर रस ||२५|| इति श्री महावीर स्तोत्रं समाप्तम् । श्रीसोमदेवसूरिविरचितम् । श्री ॥ श्री ॥ शुभम्भवतु ॥ श्री
1765/8150 ( 1 ) युगादिदेवमहिम्नस्तोत्र
।। ६ ।। श्रीगणेशायनमः ॥ श्रीगुरुभ्योनमः ॥ श्रीगौतमायनमः ॥ महिम्न: पारंते परमलभमाना अपि विभो, भवन्ति स्तोतारः समवसृतिभूमौ समुदिता । यदिन्द्रास्त्वां तज्जिनवृषभक्त्या स्तवयतो, ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः | १||
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634