Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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दूसरे भाग की भाँति ग्रन्थ के अन्त में कवि परिचय देने का विचार था पर समयाभाव से नहीं दिया जा सका। कवियों के नामों की सूचि आगे दी हो जा रही है। साथ ही ग्रन्थों के नामों की अनुक्रमणिका भी दी जा रही है। कनक कुशल, कुशलादि कुछ कवियों के और भी कई अज्ञात व महत्वपूर्ण ग्रंथ पीछे से प्राप्त हुए हैं।
इस ग्रन्थ का प्रफ स्वयं न देख सकने के कारण अशुद्धियाँ अधिक रह गई हैं, जिसका मुझे बड़ा खेद है।
प्रूफ संशोधन विद्यापीठ के विद्वानों द्वारा ही हुआ है इस श्रम के लिये वे धन्यवाद के पात्र है।
इस ग्रंथ के लिये विवरणों के वर्गीकरण में स्वामी नरोत्तमदास जी का सहयोग उल्लेखनीय है । श्री बदरीप्रसाद जी साकरिया पुरुषोत्तम मेनारिया आदि अन्य जिन २ सज्जनों से इस ग्रंथ के तैयार करने में सहायता मिली है उन सभी का से आभारी हूँ।
प्रस्तुत ग्रंथ और इसके पूर्व वर्ती मेरे संपादित द्वितीय भाग से यह स्पष्ट है कि जैन विद्वानों ने भी विविध विषयक हिन्दी ग्रंथों के निर्माण में पर्याप्त योग दिया है। हिन्दी जैन साहित्य बहुत विशाल है पर अभी तक हिन्दी साहित्य के इतिहास में उसको उचित स्थान नहीं मिला। दिगम्बर विद्वानों ने तो हिन्दी साहित्य की काफी सेवा की है केवल राजस्थान के जयपुर में ही पचीसों विद्वान हिन्दी प्रन्थकार हो गये हैं जिनकी परिचायक लेखमाला जयपुर से प्रकाशित वीरवाणी नामक पत्र में लंबे अरसे तक निकली थी। जयपुर और अमेर के भंडारों के जो सूची प्रकाशित हुई हैं उनमें बहुत से हिन्दी ग्रंथ भी हैं। प्रकाशित संपह में अपभ्रंश ग्रंथों के साथ हिन्दी (राजस्थानी गुजराती सह जैन प्रन्थों के विवरण भी प्रकाशित हुआ है उनकी ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया जाता है। प्रस्तुत प्रयत्न द्वारा अज्ञात ग्रंथों व कवियों को प्रवाह में जाने का जो प्रयत्न दिया गया है उनका हिन्दी साहित्य के इतिहास में यथोचित उल्लेख हुआ शोध कार्य की प्रेरणा मिली तो मैं उनका प्रयत्न सफल समझूगा ।
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