Book Title: Jain Bal Gutka Part 01
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Gyanchand Jaini

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Page 106
________________ सन . . . . - 2 8.. - "जैनवाल गुटके दूसरा भाग में नवकार मंत्र के २५ महामा जैनबाल गुटके दूसरे काम में नई कार मय के साई शष्ट और मार का सलग मनन्द अर्थ और भत्रकार के महान कार छपे हैं । इन मंत्रों में चार रक्षा में ही होनी चरण से गाव नलवार को देव को मार सके दो हमें अन्दरकने इसने की हैसही मातानुगजी आकार एक हो । ... के स्परा से लोग मारे १ मा पाने के अस्ति मागन को शांत हो जाए। भाषा लोलो साता देवी की कानात का ताप मारण मन्त्र बाद में जीत पानेको मन्द मैले भन्दा देव और हार जाते एविया आति मन्त्र पूर्व को मोशिया ९ परदन में लान महाकर सरावाच -हो, ऐसा मुन्न । १ द्रश्य पारि मन्त्र । सन्तान रो) शव पोला मन्त्र ( हमने मुझे मर्गलाचरण और उसका शब्द शब्दना अलग मार्य भोइसी पुस्तक में छाश है ऐसे अनेक कंथतः यो उकासे पुस्तकका काम हमने केवल हो रहा शुद्ध पञ्चकल्याणक तिथियों का चार नावीसी पूजा पाठ संग्रह। . इस सप जैन मंदिरों में जो वायत्री पूजा गर कमियों के नागार "मौजद है इन में पंचकल्याणक की अनेक तिथि मालवा रविवार को दूर करने की जो সুমন মুখ খুঁই বলা যায় না জানি না মুহাজেল আর কােজর तिथियों के पास अन दार एक महान अंध में कुल पन्धाकार उपहाखे हैं कि की शुद्धता का रकासा हमारे सुकी पावर सध्यार । ईप चका है, जिसे में उसकता है। खोयीसो पूजापाठ हैं दूसँच नगरच्चन्द साव को असल जिसका कत, माया बोलाई असतांवरसिंह कृत भाषा वाँधी जी यूजा गार हैं जिन पका दाम पिये है तिमाह जेन को लाहोर । सद पाठकों को विदित किया जाता है कि तिमाही जैन पत्रिका जाहोर) एस नाम का इमाग भजन सर माता का नया धमाधम होता है स्त्रियों को गर्भ रहने का इलाज जिन सा पान की श्रियों को कभी न रहता हो मिली के संचार पवार होने पर लाज को विनि और हमारे वीज कॉल के नियम रन के भीतर कर पाई किरा न का पता वा जनचन्द्र जैनी बाहोर .' , J - .COM समS. "-: A

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