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वर्धमान जीवन - कोश
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बालारागद्वेषाकलिताः स्वकृतेन कर्मणा पृथक्तया सर्वयोनि भोक्त ेन च कल्पिता व्यवस्था - पिता इति । × × ×1
किवच भगवं च इत्यादि भगवांश्चवीरवर्द्धमान स्वाम्येवमवगम्य ज्ञातवान् सह उपधिनावर्तत इति सोपधिकः द्रव्यभावोपधियुक्तः ज्हरवधारणे लुप्यत एव कर्म्मणो क्लेशमनुभवत्येवाज्ञो बाल इति, यदि
तस्मात् सोपधिकः कर्मणा लुप्यते बालस्तस्मात्कर्म च सर्वशो ज्ञात्वा तत्कर्म्म प्रत्याख्यातवांस्तदुपादानं च पापकर्मानुष्टानं भगवान् वर्द्धमानस्वामीति ।
कर्मों के वशीभूत होकर स्थावर जीव ( पृथ्वो- अप्-तेजस - वायु-वनस्पत्तिकाय ) सरूप में द्वीन्द्रियादि जीव रूप में उत्पन्न होते हैं तथा सजीव - कुमी आदि भी पृथ्वी आदि स्थावर रूप में उत्पन्न होते हैं ।
जो जीव सर्वयोनि में उत्पन्न हुए है वे जीव सर्वयोनिक कहलाते हैं तथा वे सर्वयोनिक जीव भजना से सर्वगतियों में उत्पन्न हुए हैं । बाल-अज्ञानी जीव राग-द्वेष से युक्त होकर, अपने किये हुए कर्मों के अनुसार भिन्न २ योनियों में उत्पन्न होते हैं यह योन्यान्तर का कथन कोई कल्पित नहीं है तथा व्यवस्थित नहीं भजना से होता हैं ।
भगवान श्री बर्द्धमान स्वामी ने स्वयमेव स्वज्ञान से यह जान लिया था कि बाल अज्ञानी जीव द्रव्य और भाव रूप उपधि के कारण कर्म से लिप्त होकर ( एक योनि से अन्य योनि में जन्म लेता हुआ ) क्लेश को पाता है । कर्मों को सब प्रकार से कर्म और कर्मफल को सर्वप्रकार - सर्वथा उपादान जानकर भगवान ने कर्म और उसके कारण पाप का प्रत्याख्यान कर दिया ।
'१६ वर्धमान को चतुर्थ प्रहर में केवल ज्ञान की उपलब्धि
(क) उग्गं च तवोकम्मं विसेसतो वद्धमाणस्स ।
अन्य सब तीर्थङ्करों की अपेक्षा महावीर के तपको उग्रतप कहा गया है ।
(ख) वैशाखे मासि सज्योत्स्नदशम्यामपराण्हके ।
- उत्तपु० पर्व / ७४ / श्लो० ३५०
वैशाख शुक्ला दशमी के दिन अपराह्नकाल में वर्धमान को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ । (ग) तेबीसाए नाणं उत्पन्नं जिणवराण पुब्वण्हे । वीरस्स पच्छिमण्हे पमाणपत्ताए चरमाए । २७५ ।। - आव० निगा० २७५
मलयटीका - त्रयोविंशति (तेः) जिनवराणां तीर्थंकृतां ज्ञानमुत्पन्नं पुर्वांहे, सूरोद्गमनमुहूर्त्ते इत्यर्थः' तथा चोक्त' चुर्णौ - " तेवीसाए तिल्थगराणं सुरुग्गमणमुहुत्ते एगराइयाए पडिमाए नाणमुत्पन्न मिति, वीरस्य भगवतः अपश्चिमतीर्थकृतः पश्चिमाण्डे, तत्रापि प्रमाणप्राप्तायां चरमायां पौरुष्यामिति, अन्ये त्वभिदधति - द्वाविंशतेः पूर्वान्हे ज्ञानमुत्पन्नं मल्लिस्वामिमहावीरयोः पुनरपराण्हे इति ।
बीस तीर्थंकरों को पुर्खाह - सूर्य के उद्गमन के समय में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ तथा वर्धमान को पश्चिम प्रहर - चतुर्थ प्रहर में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।
अन्य लोगों की यह मान्यता है कि बाइस तीर्थकरों को पूर्वान्ह में केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ तथा मल्लिनाथ व महावीर स्वामी को अपरान्ह में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।
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- आव० निगा २६२
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