Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 314
________________ वर्धमान जीवन-कोश (ख) धनदेवश्च मौर्यश्च मौर्यालये सन्निवेशने । द्वावभुतां द्विजन्मानौ मातृप्यायको मिथः ।।५।। पत्न्यां विजयदेवायां धनदेवस्य नन्दनः । मंडिकोऽभुत्तत्र जाते धनदेवो व्यपद्यत ।।५३।। लोकाचारो ह्यसौ तत्रेत्यभार्यों मौर्यकोऽकरोत् । भार्या विजयदेवां तां देशाचारो हि न ह्रिये ॥५४|| क्रमाद्विजयदेवायां मौर्यस्य तनयोऽभवत् । स च लोके मौर्यपुत्र इति नाम्नैव पप्रथे ॥५५॥ –त्रिशलाका० पर्व १०।सर्ग ५ मौर्य ग्राम में धनदेव और मौर्य दो विप्र थे जो परस्पर मासो के पुत्र-भाई थे। उसमें धनदेव के विजयदेवी नाम की पत्नी से मंडिक नामक एक पुत्र था। अस्तु मंडिक के जन्म होते ही धनदेव मृत्यु को प्राप्त हुआ। इसके बाद लोकाचार प्रमाण से-स्त्रीविनाका मौर्य का विजयदेवी के साथ विवाह हुआ। देशाचार लज्जा के लिए नहीं होता। कालक्रम से मौर्य से विजय देवी के एक पुत्र हुआ -- लोक में वह मौर्यपुत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। अतः मंडितपुत्र और मौर्यपुत्र की माता का नाम विजयदेवो था लेकिन मंडितपुत्र के पिता का नाम धनदेव था तथा मौर्यपुत्र के पिता का नाम मौर्य था। .३ दीक्षा के समय मौर्यपुत्र की अवस्था थेरेणं मोरियपुत्ते पणसट्ठिवासाई अगारमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । -सम० सम ६५ टीका-'मौरियपुत्ते णं' ति मौर्यपुत्रो भगवओ महावीरस्य सप्तमो गणधरस्तस्य पंचषष्टिवर्षाणि गृहस्थपर्यायः आवश्यकेऽप्येवमेवोक्तो, नवरमेतस्येव यो वृहत्तरो भ्राता मंडितपुत्राभिधानः षष्ठो गणधर: तद्दीक्षादिन एव प्रत्रजितस्तसावश्यके त्रिपंचाशद्वर्षाणि गृहस्थपर्याय उक्तो न च बोधविषयमुपगच्छति यतो बृहत्तरस्य पंचपष्ट्रियुज्यते लघुनरस्य त्रिपंचाशदिति । मौर्यपुत्र भगवान् महावीर के सातवें गणधर थे। गृहस्थपर्याय ६५ वर्ष की थी। आवश्यकसूत्न में भी ऐसा ही कहा है परन्तु इनसे जो बड़े भाई मंतडिपुत्र नाम के छ? गणधर थे। इनकी दीक्षा के दिन ही प्रवजित हुए। उनको गृहस्थपर्याय आवश्यकसूत्र में ५३ वर्ष की कही है। यह सम्यग् प्रकार घटित नहीं होती। अतः बड़े भाई मंडित की आयु ६५ वर्ष की तथा छोटे भाई मौर्यपुत्र की आयु ५३ वर्ष की होनी चाहिए। .४ मौर्यपुत्र का आयुष्य थेरेणं मोरिययुत्ते पंचाणउइवासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव पहीणे । -सम० सम ६५ स्थविर मौर्यपुत्र पचानवें वर्ष के आयुष्य का पालन कर सिद्ध हुए, बुद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से रहित हुए। मौर्य पुत्र भगवान् महावीर के सातवें गणधर थे। वे गृहस्थवास में ६५ वर्ष, छहमस्थ साधुपर्याय में १४ वर्ष नथा केवलीपर्याय में १६ वर्ष रहे। कुल ६५ की आयु थी। टीका-मौर्यपुत्रो महावीरस्य सप्तमगणधरस्तस्य पंचनवतिवर्षाणि सर्वायुः, कथं १, गृहस्थत्वछद्मस्थत्व केवलित्वेष कोण पंचपष्टिच दशपोडश.नां वर्षाणांयभावादिति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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