Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 372
________________ वर्धमान जीवन-कोश ३२५ .२-अभिग्रह फलित होने पर देवों द्वारा वृष्टि (क) कोहव - सिस्थइ सरावि कय। सउवीर - विमीसइँ हयमय । मुणि - णाहहु करयलि ढोइयइँ । तेणवि णियदिट्टिइ जोइय।। जायाइँ भोज्जु रस - दिण्ण-दिहि! अट्ठारहा - खण्ड - पयार - विहि ।। जिण - दाण - पहावें दुइमइँ । आयस - घडियइँ रोहिय - कम । सज्जण - मण - णयणाणंदणहि । परिगलिय' णियलई चंदणहि ॥ -वीरजि० संधि २/कङ५ अमरहिं महुयर - मुह - पेल्लियइँ। कुदइँ मंदारइँ घल्लियइँ ।। ग्यणाई वण्ण - कब्बुरियाइँ । पसरंत - किरण - विष्फुरियाइँ ॥ हय दु'दुहि साहुकारु कउ । गुणि - संगें कारुण जाउ जउ ॥ कण्णहि गुणोहु विउसेहिं थुउ ! सहुँ बंधवेहिं संजोउ हुउ । -वीरजि० संधि २/कङ५ परेद्यर्वत्सदेशस्य कौशाम्बीनगरान्तरम् । कायस्थित्यै विशन्तं तं महावीर विलोक्य सा ॥३४३॥ प्रत्युव्रजन्ती विच्छिन्नशृङ्खलाकृतबंधना। लोलालिकुललीलोरुकेशभाराच्चलाचलात् ॥३४४|| विगलन्मालतीमालादिव्याम्बरविभूषणा। नवप्रकारपुण्येशा भक्तिभावभरानता ॥३४५।। शीलमाहात्म्यसंभूतपृथुहेमशराविका। शाल्यन्नभाववत्कोद्रवौदनं विधिवत्सुधीः ।।३४६।। अन्नमाश्राणयत्तस्मै तेनाप्याश्चर्यपंचकम् । बंधुभिश्च समायोगः कृतश्चन्दनया तदा ॥३४॥ -उच्चपु० पर्व ७४ (ख) पंच दिव्याणि पाउन्भूयाणि, ते वाला तदवत्था चेव जाया, नियलाणि फिट्टाणि, सोवन्नयाणि नेउराणि जायाणि, देवेहिय सव्वालंकारा कया, सक्को देवराया आगतो, वसुहाराए पमाणं अड्ढतेरस हिरण्ण कोडो, कोसंबीए य सव्वतो उग्घुट्ठ-केणइ पुण्णम् तेण अज सामी पडिलाहितो, ताहे राया संतेउरयरियणो आगतो, तत्थ संपुलो नाम दहिवाहणस्स कंचुकी, सोरण्णा बंधित्ता आणीतो, सोऽविरण्णा सहतत्थागतो, तेणसा चंदणा पच्चभिजाणिया, पच्छा पाएसु पडिऊण परुन्नो, राया पुच्छति-काएसा ? तेण से कहियं, जहा-एसा दहिवाहणस्स रणो दुहिया, मियावती भणइ-मम भागिणिधूया, अमच्चोवि सपत्तीतो आगतो सामी वंदइ, सामीविनिग्गतो, ताहे रायातं वसुहारं पगहिओ, सक्केण वारितो, जस्स एसा देइ तस्स आभवइ, सा पुच्छिया भणइ-ममपिउणो, ताहे सक्केण सयाणितो भणितो-एसा चरमसरीरा एवं संगोवाहि जावसामिस्स नाणं उप्पज्जइ, एसा पढमसिस्सिणी, ताहे कन्नं तेउरे छूढा संचिट्ठइ, छम्मासा तया पंचहिं दिवसे हिं उणगा अभिग्गहस्स गहियस्स जाया जद्दिवसं सामिणा भिक्खालद्धा, सावि मूला लोगेण अंबाडिया हीलियाय । अमुमेवार्थ सजिघृक्षुराह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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