Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 335
________________ वर्धमान जीवन-कोश समणे समणोवासए वा। जेहिं वि अण्णेहिं पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमयंति ताणि वि ते अब्भाइक्खंति। कस्स णं तं हे । संसारिया खलु पाणा-तसावि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि पाणा तसत्ताएपच्चायंति। तसकायाओ विष्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववति । तेसिं च णं तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अघत्तं । -सूय० श्रु २/अ सू७/११ भगवान गौतम ने उदय पेढालपुत्र को उत्तर दिया-आयुष्यमान् उदक! तुम्हारा कथन हमें उचित नहीं लगता है। जो कोई श्रमण-माहण तुम्हारे कथन के अनुसार प्रतिपादन करते हैं। वे श्रमण-निर्ग्रन्थों की भाषा नहीं बोलते हैं-अनुताप करने वाली भाषा बोलते हैं। श्रमण-श्रमणोपासकों पर व्यर्थ कलंक लगाते हैं - जो दूसरे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व में संयम करते हैं, उन पर भी व्यर्थ कलंक लगाते हैं। क्योंकि प्राणियों में परिवर्तन होते रहते हैं और उनमें से त्रसकाया में उत्पन्न होनेवाले प्राणियों को उन्हें हनना योग्य नहीं है। .५ उदय पेढालपुत्रका प्रतिप्रश्न सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी-कयरे खलु आउसंतो! गोयया ! तुम्भे वयह तसपाणा तसा आउ अण्णहा, ? -सूय० श्रु २/अ ७ सू १२ उदक पेठालपुत्र ने भगवान गौतम को कहा-आयुष्मान् गौतम ! तुम त्रस प्राणी को ही त्रस कहते हो कि किन्हीं दूसरे को। .६ भगवान् गौतम का प्रत्युत्तर सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्रं एवं वयासी-आउसंतो! उदगा ! जे तुम्भे वयह तसभूया पाणा तसा ते वयं वदामो तसा पाणा तसा । जे वयं वयामो तसा पाणा तसा ते तुम्भे वदह तसभूया पाणा तसा । एए संति दुवे ठाणे तुल्ला एगट्ठा। किमाउसो ! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ-तसभूया पाणा तसा ? इमे भे दुप्पणीयतराए भवइ-तसा पाणा तसा ? तओ एगमाउसो! पलिकोसह एक्कं अभिणंदह ! अयंपि "भे उवएसे" णोणेयाउए भवइ। भववं च णं उदाहु-संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वंभवइ-णोखलु वयं संचाएमो मुंडाभवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । वयं णं" अणुपुव्वेणं गोत्तस्स लिस्सिस्सामो। ते एवं संखसावेंति-णण्णत्थं अभिजोगेणं गाहावइ-चोरग्ग्गाहण-विमोक्खयाए तसे हिं पाणेहिंणिहाय दंडे । तंपितेसिं कुसलमेव भवइ। -सूय० श्रु/अ /सू १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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