Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 374
________________ वर्धमान जीवन-कोश ३२७ देवपति श केन्द्र भी पूर्ण अभिग्रह वाले प्रभु को वंदन करने के लिए मन में हर्ष को प्राप्त--प्राप्त वेग से वहाँ आया। ____ अस्तु दहिवाहन राजा का संपुल नामक एक कंचुकी था। उसने जिम समय चंपानगरी को लटा उस समय वहाँ से शतानिक राजाने पकड़ कर लाया था। उसे इस समय मेंही छोड़ देने से वह भी वहाँ आया । फलस्वरूप स्वयं के राजा की पुत्री वमूमती को देखकर उसके पैरों में पड़ गया और खुले कंठों से रुदन करने लगा। इससे उस बाला को भी रुदन आया वह बाला भी रोने लगी। यह देखकर शतानिक राजाने उसे पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो। तब उस कंचुकी ने अश्रुधारा सहित कहा-कि महाराज । दधिवाहन राजा की धारिणो रानी की यह पुत्री है। अहो। केमे उत्कृष्ट वैभवमे भृष्ट होकर माता-पिता के बिना यह बाला दूसरों के घर में दामी की तरह रहती है। यह देख र मैं रोने लगा। तब राजा ने कहा कि हे भद्र । यह कुमारी शोक करने योग्य नहीं है, क्योंकि उसने तीन जगतको रक्षण करने में शूरवीर ऐसे वीर प्रभुका अभिग्रह पूर्णकर प्रतिलाभित किया है । उस समय मृगावती ने कहा-अरे! धारिणी तो हमारी बहिन भी होती है उसकी यह दुहिता है। तब हमारो भी यह दुहिता है। तत्पश्चात् वर्धमान-महावीर छ: मास में पाँच दिन न्यून नप का पारणा कर धनावह सेठ के घर से बाहर निकले। अस्तु भगवान के विहार करने के बाद लोभ की प्रबलता से शतानिक राजा उस वसुधारा का धन लने की इच्छा को। तब सौधर्मपति ने शतानिक राजा को कहा-है राजन् । तुम यह रत्नवृष्टि लेने की इच्छा करते हो परन्तु इस द्र०प पर तुम्हारा स्वामीभाव नही है। _इस कारण यह कन्या जिमका दी जायेगो वह यह द्रव्य ले सकता है। राजा ने चंदना को पूछा किचदना। यह द्रव्य कान ले सकता है। प्रत्युत्तर में चंदना ने कहा कि यह धनावह सेट यह द्रव्य ग्रहण करेगाक्योंकि मने मेरा प्रतिपालन करने से मेरा पिता है। तत्पश्चात् धनावह सेट ने वसुधारा का द्रव्य ग्रहण किया। बाद में इन्द्र ने दूसरी बार शतानिक राजा को कहा कि यह बाला चरम शरीरी, और भोगतृष्णा से विमुख है। इस कारण जिस समय वीर प्रभु को केवल ज्ञान होगा-उस समय वह उनकी प्रथम शिष्या होगी। उमलिए जहां तक प्रभु को केवल ज्ञान न उत्पन्न हो । वहाँ तक इस कन्या का रक्षण करना । इस प्रकार कह कर-प्रभु को नमस्कार कर इन्द्र देवलोक में गया । अस्तु राजा शतानिक चंदना को स्वयं के घर ले गया और कन्याओं के अंतःपुर में उसे रखा। चंदना भी प्रभु का कवलज्ञान की उत्पत्ति का ध्यान करती हुई वहाँ रही। पूर्व जो धनावह सेठ को स्त्री मूला सेठानो-- जो अनर्थ का मूल कारण थी। उसे धनावह सेठ ने निकाल दिया। वह दुनि करतो हुई मृत्यु प्राप्त कर नरक गयो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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