Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 386
________________ वर्धमान जीवन-कोश ३३६ दलसुख मालवणिया, अहमदाबाद श्री चोरड़ियाजी ने इस विषय में जो परिश्रम किया है वह धन्यवाद के पात्र हैं। यह ग्रंथ इतःपूर्व प्रकाशित लेश्या-कोश, किया-कोश की कोटिका ही है। इन ग्रन्थों में श्री चोरडियाजी का सहकार था। हमें आशा है कि वे आगे भी इस कोटि के ग्रन्थ देते रहेंगे। विशेषता यह है कि आगमों में जितने भो अवतरण इस विषय में उपलब्ध थेउनका संग्रह किया है। इतना ही नहीं आधुनिक काल के ग्रन्थों के भो अवतरण देकर ग्रन्थ को संशोधकों के लिए अत्यन्त उपादेय बनाया है-इसमें सन्देह नहीं है। Glory of India, freat "मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' यह पुस्तक अनेक विशिष्टताओं से युक्त हैं। एक मिथ्यात्वी भी सद्अनुष्ठानिक क्रिया से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। साम्प्रदायिक मतभेदों की बातें या तो आई ही नहीं है अथवा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का समभाव से उल्लेख कर दिया गया है। श्री चोरड़ियाजी ने विषय का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर और तलस्पर्शी ढंग से किया है। विद्वज्जन इसका मूल्यांकन करें । निःसन्देह दारानिक जगत के लिए चोरडियाजी की यह एक अप्रतिम देन है। मुनिश्री जशकरण, सुजानगढ़ अनुमानत: लेखक ने इस ग्रंथ को लिखने के लिए अनेकानेक ग्रंथों का अवलोकन किया है। टीका भाष्यों के सुन्दर संदर्भो से पुस्तक अतीव आकर्षक बनी है । डा० भागचन्द्र जैन, नागपुर विद्वान् लेखक ने यह स्पष्ट करने का साधार प्रयत्न किया है कि मिथ्यात्वी का कब और किस प्रकार विकास हो सकता है । लेखक और प्रकाशक इतने सुन्दर ग्रंथ के प्रकाशन के लिए बधाई के पात्र हैं। डा० दामोदर शास्त्री, दिल्ली लेखक ने अपने इस प्रथ में शोधसार समाविष्ट कर शोधार्थी विद्वज्जनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। यत्र-तत्र पेचीदे प्रश्नों को उठाकर उसका सोदाहरण व शास्त्र सम्मत समाधान भी किया गया है। मुनिश्री राकेशकुमार, कलकत्ता ___श्रीचन्द चोरड़िया के विशिष्ठ ग्रन्थ 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' में शास्त्रीय दार्शनिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण प्रतिपादन हुआ है। जैन धर्म के तात्विक चिन्तन में रूचि रखनेवालों के लिए तो यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक और रसप्रद है ही, किन्तु साम्प्रदायिक अनाग्रह और वैचारिक उदारता के इस युग में हर बौद्धिक और चिन्तनशील व्यक्ति के लिए इसका स्वाध्याय उपयोगी भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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