Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan
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वर्धमान जीवन कोश
२६७
(च) भगवं च णं उदाहु-संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा - अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पे माणा विहरंति, सुसीला सुब्वया सुम्पडियाणंदा सुसाहू |
एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया । एगच्चाओ मुसावाओ डिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया ।
एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया । एगच्चाओ ओडिविया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अनडिविरया । एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया ।
जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते । ते तओ आउगं विष्वजति, विप्पजहित्ता ते तओ भुज्जो सगमादाए सोग्गइग मिणो भवति ।
1
ते पाणाविच्चंति, ते तसावि वृत्च्वंति ते महाकाया, ते चिरट्टिइया ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुनच्चक्वायं भवइ । ते अपयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अप व बायें भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जंतुभे वा अण्णो वा एवं वयह-'" णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्वित्ते ।" अपि भे उसे णो णेयाउएभवइ । सूय० श्रु २अ / सू २४
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कई मनुष्य अल्पेच्छ, अल्पाहंसक, अल्पपरिग्रही, धार्मिक, धर्मानुगामी यात्रत् एक अंश से परिग्रही से अप्रतिविरत होते हैं – जिनकी हिमा के श्रमणोपासक के त्याग होते हैं । वे वहाँ से आयुष्य पूर्ण करते हैं। सद्गतिगामी होते हैं । जहाँ वे त्रस कहे जाते हैं । अतः भावक के व्रत को निर्विषय बनाना न्यायसंगत नहीं है । (छ) भगवं चणं उदाहु - संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा- आरणिया आवसहिया गामंतिया कण्हुई रहस्सिया - जेहिं समणोवासगत्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ - णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेहिं अपणा सच्चामोसाई एवं विरंजंतिअहंणं हंतव्य अण्णे तव्वा । अहं ण ऊज्जावेयव्त्रो अण्णे अज्जावेयव्त्रा, अहंण परिघेतन्त्र अण्णे परिघेता, अहं ण परितावेयव्वो अण्णे परितावेयच्या, अहं ण उद्दवेयन्त्रो अण्णे उद्दवेयव्त्रा । एवमेव इत्थकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाई चउपंचमाई छद्दसमाई अप्पयरो वा भुजयरो वा भुजित्तु भोगभोगाई' कालमासे कालं कित्त्वा अण्णयराई आसुरियाई किव्विसियाई, ठाणाई उववत्तारो भवंति । तओ वि विप्पमुचमाणा भुज्जो एलमृयत्ताए तमोरुवत्ताए पच्चायति ।
ते पाणा वि चुच्चात, ते तसावि बुचंति, ते महाकाया । ते चिरट्टिइया, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक वायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्वायं
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