Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 348
________________ वर्धमान जीवन कोश ३०१ यह - ' णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दण्डे णिक्खित्ते । अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । - सूय० श्रु २ / अ७ / सू २६ वहां सभी प्रदेश में रहनेवाले जो त्रस प्राणी हैं जिनको श्रावकों ने व्रत ग्रहण के दिन से लेकर मरणपर्यंत दंड देना त्याग दिया है वे अपनी उस आयु को त्याग कर उस देश के दूरवर्ती देश में रहनेवाले जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं जिनको दंड देना श्रावक ने व्रत ग्रहण के दिन से मरणपर्यंत छोड़ दिया है उनमें उत्पन्न होते हैं । उन प्राणियों में श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान चरितार्थ होता है वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं उन्हें श्रावक दंड नहीं देता है अतः श्रावकों के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना न्याययुक्त नहीं है । .४ तत्थ आरेण जे थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते । ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहिं समणोवास गरस सुपरच्चक्खायं भवइ । ते पाणाविच्चति, ते तसा वि वुच्चंति से महाकाया, ते चिरट्ठिइया । बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खाय भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्ससं उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णोवा एवं यह - ' णत्थि से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते" । अयं प भे उसे णो णेयाउए भवइ । - सूय० श्रु २/अ ७ / सू २६ मर्यादित भूमि के अन्दर के जो स्थावर जीव है - जिनकी श्रमणोपासक ने सप्रयोजन हिंसा नहीं छोड़ी है किन्तु निष्प्रयोजन हिंमा छोड़ी है—वे मर्यादित भूमि में त्रस रूप से उत्पन्न हों । अर्थात् वे उस आयु को त्याग कर वहां समीप देश में जो त्रस प्राणी हैं जिनको श्रमणोपासक ने व्रत ग्रहण करने के दिन से लेकर मरणपर्यंत दंड देना वर्जित किया है उनमें आकर उत्पन्न होते हैं उनमें श्रमणोपासक का सुप्रत्याख्यान होता है वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं अतः उसके अभाव के कारण श्रावकों के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना न्याययुक्त नहीं है । • ५ तत्थ आरेणं जे थ वरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तत्थ आरेणं चेव जे थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दण्डे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दण्डे णिक्खित्ते । ते पाणावि जाव अयं पि भेउवए णो णेयाउए भवइ । - सूय० श्रु २/अ ७ / सू २६ मर्यादित भूमि के अन्दर के स्थावर प्राणी जिनकी श्रमणोपासक ने सप्रयोजन हिंसा नहीं छोड़ी — किन्तु निष्प्रयोजन हिंसा छोड़ी है—वे स्थावर प्राणी अपनी उस आयु को त्याग करके वहां जो समीपवर्ती स्थावर प्राणी हैं - जिन्हें श्रावक ने प्रयोजनवश दंड देना नहीं छोड़ा है परन्तु बिना प्रयोजन दंड देना छोड़ दिया- उनमें उत्पन्न होते हैं । उन्हें श्रमणोपासक प्रयोजनवश तो दंड देता है परन्तु बिना प्रयोजन नहीं देता है। इसलिए श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना न्याययुक्त नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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