Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 317
________________ २७० वर्धमान जीवन-कोश भगवान् के ऐसे वचन को सुनकर संशय नष्ट होने से अकंपित प्रतिबोध को प्राप्त हुआ और ३०० शिष्यों के साथ भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की.२ अकंपित के माता पिता के नाम देव-जयन्तीण मुओ अकंपिओ नाम अट्ठमो जयइ । अट्ठत्तरिवरिसाऊ मिहिलाए समुब्भवो भगवं । -धर्मो० पृ० २२७ तथैव मिथिलापुर्या' देवनाम्नोद्विजन्मनः । अभूदकं पितो नाम जयन्तीकुक्षिजः सुतः ।।५६।। -त्रिशलाका पर्व १०सर्ग ५ अकंपित के माता-पिता का नाम क्रमशः जयन्ती और देव था। जन्मस्थान मिथिला था। अद्रत्तर वर्ष की आयु थी.३ अकंपित गणधर की आयु थेरे णं अकंपिए. अट्ठसत्तरिं वासाइंसव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगई परिणिव्वुडे सव्वदुकावप्पहीणे -सम० सम ७८ सू२ टीका-अकम्पितः स्थविरो महावीरस्याष्टमो गणधरस्तस्य चाष्ट सप्ततिवर्षाणि सर्वायुः, कथं ? गृहस्थपर्याये अष्टचत्वारिंशन ,मस्थपय ये ना केवलिपय ये चेकविंशतिरिति .४८ नववे अचलभ्राता गणधर .१-अचलभ्राता का श्रमण भगवान महावीर के पास आगमन (क) ते पचहए सो उं अयलो आगच्छई जिणसगासं । वच्छामि ण वंदामी वंदित्ता पन्जुवासामि ।६३० -आव. निगा ६३० मलय टीका- व्याख्या पूर्ववत , नवरमचलभ्राता आगच्छति जिनसकाशमिति विशेषः । आभद्रो य जिणेणं जाइजशमरणविप्पमुक्केणं। नामेणय गोतेणय सचन्नमव्यदग्सिीण ।।६३१।। -आव० निगा ६३१ मलय टीका-अस्या सपातनिका व्याख्या पूर्ववत । किं मन्ने पुण्णपावं अत्थी नस्थित्ति संसओ तुज्झं । वेयपयाण य अत्थं न याणसी सिमो अत्थो।६३२॥ मलय टीका-किं पुप्यपापे स्तः किंवा नेति मन्यसे, व्याख्यान्तरं पूर्ववत् , अयं च संशय लव विद्धवेदपदश्रुतिप्रभवो दर्शनान्तरविरुद्धश्रुतिप्रभवश्च, तानि चामूनि वेदपदानि-पुरुप एवेदं ग्निं सर्व, मित्यादि, अस्य यथा द्वितीयगणधरवक्तव्यतायां व्याख्या तथाऽत्रापि, तथा सौम्य ! अचलभ्रातस्त्वमित्थं मन्यसे-दर्शनविप्रतिपत्तिश्चात्र, तत्र कंपांचिद्दर्शनं-पुण्यमेवैकमस्ति न पापं, तदेव चावाप्तप्रकर्षावस्थं स्वर्गायक्षीयमाणं मनुष्यतियेगनरका दिभवफत्ताय, तदशेपक्षयाञ्च मोक्ष इति, यथा अत्यन्तपथ्याहारसेवनादुत्कृष्टमारोग्यसुखं भवति, किञ्चित्पथ्याहारपग्विजनाच्चागेग्यसबहानि. अशेपाहार परिक्षयाच्च सुवाभावकल्पोऽपवर्गः, अन्येपां तु पापमेवैकं, न पुण्यमस्ति, तदेव चोत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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