Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 302
________________ वर्धमान जीवन-कोश २५५ जादो सिद्धो वीरो तदिवसे गोदमो परमणाणी। जादो तस्सि सिद्ध सुधम्मसामी तदो जादो ।। तम्मि कदकाम्मण से जंबूसामि त्ति केवली जादो। तत्थवि सिद्धिपवण्णे केवलिणो णस्थि अणुबद्धा ।। -तिलोप० १४७६,७७ घाति कर्मों का नाश कर जम्बू स्वामी केवली हुए। जम्बू स्वामी के बाद केवलज्ञान का विच्छेद हो गया । जम्बू स्वामी द्वारा सिद्धि प्राप्त कर लिये जाने पर अनुबद्ध केवलि नहीं हुए। थेरेस्सणं अजपुहम्मस्स अग्गिवेसायणगोत्तस्स। अज्जजंबुनामथेरे अंतेवासी कासवगोत्ते ।। -कप्प० सू २०५ सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबू नामं च कासवं ।। -नंदी०. स्थविरावली गा २५ अग्नि वैश्यापन गोत्रोत्पन्न, स्थविर आर्य सुधमो के काश्यपगोत्रोत्पन्न आर्य जंबू नामक स्थविर अंतेवासी थे। आर्य सुधर्मा के पट्टधर जंबूस्वामी थे । (घ) मुक्त तत्र च पंचमो गणधरो लब्ध्वा सुधर्मप्रभु-र्ज्ञानं पंचममन्वशाञ्चिरन्तरं धर्म जनान् क्ष्मातले ।। प्राप्तो राजगृहाभिधाननगरे निःशेषमप्यन्यदा, जंबूस्वामीमुनेरधीनमनघं संघं निजं निर्ममे ॥२८३॥ तस्मिन्नेव पुरे सुधर्मगणभृत्क्षीणाष्टकर्मा-क्रमा-त्तुर्यध्यानधरोऽपुनर्भवमगादद्वैतसौख्यं पदम् । पश्चादन्तिमकेवली क्षितितले श्रीवीरमार्गाग्रणीधर्म भव्यजनान् प्रबोध्य सुचिरं जंबूप्रभुश्चान्यदा ॥२८४ - त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १३ गौतमस्वामी के मोक्ष जाने के बाद पांचवे गणधर सूधर्म स्वामी पंचम ज्ञान को प्राप्त कर बहत वर्षों तक पृथ्वी पर विचरण कर लोगों को धर्मदेशना दी। अंत में वे भी राजगृही नगरी में पधारे और स्वयं के निर्दोष संघ को जंबूस्वामी को स्वाधीन किया। बाद में सुधर्मास्वामी गणधर भी उसी नगरी में अशेष कर्मों को क्षय कर शुद्ध ध्यान में अद्धत सुखवाले स्थान को प्रप्त किया। उसके बाद अन्तिम केवलो श्री जंबुस्वामी भी श्री वीर। भगवान के शासन में अग्रणी होकर बहुत वर्षों तक भकजनों को धर्म संबंधी उपदेश दिया और अंत में मोक्ष प्राप्त किया। .१० सुधर्मा गणधर से जंबूस्वामी के प्रश्नोत्तर तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्ज सुहम्मस्स अणगास्स जेट्टे अंतेवासी अजजंबू णामं अणगारे कासवगोत्तेणं सत्र सेहेजाव अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढं जाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवस्सा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।६।। -नाया० श्रु १/अ६ उस समय सुधर्मा अनगार के ज्येष्ठ शिष्य काश्यपगोत्रोत्पन्न आर्य जंबू अपने गुरु के न बहुत दूर, न बहुत समीप, ऊर्ध्व जानू , प्रणत मस्तक, धर्मध्यान व शुद्ध ध्यानरूपी कोप्ठ में अवस्थित, संयम और तपस्या से अपने को प्रभावित करते हुए उपस्थित थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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