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रघुवंश
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अथानुकूल श्रवण प्रतीतामत्रस्नुभिर्युक्तधुरं तुरंगैः । 14/47
जिसके घोड़े ऐसे सधे हुए थे कि रथ के चलते समय गर्भिणी सीता को तनिक भी हचक नहीं लगने पाती थी ।
गुरोर्ययक्ष कपिलेन मेध्ये रसातलं संक्रमिते तुरंगे । 13 / 3
जब हमारे पुरखे महाराजा सगर अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। तब कपिल जी उनका घोड़ा पाताल लोक में चुरा ले गए।
सा मंदुराश्रयिभिस्तुरंगैः शालाविधिस्तंभगतैश्च नागै: । 16/41 अयोध्या में घुड़साल में घोड़े बँधे हुए थे, हथसारों के खंभों से हाथी बँधे हुए थे । तद्गमग्र्यं मघवन्महाक्रतोरमुं तुरंग प्रतिमोक्तुमर्हसि । 3 / 46
इसलिए हे इन्द्र आप मेरे पिता के अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़े को छोड़ दीजिए ।
3. तुरग : - [ तुरेण वेगेन गच्छति - तुर+ गम् + इ] घोड़ा ।
रजो भिस्तुरगोत्कीर्णैरस्पृष्टालकवेष्टनौ । 1/42
घोड़ों के खुरों से उठी हुई धूल न तो सुदक्षिणा के बालों को छू पाती थी और न राजा दिलीप की पगड़ी को ।
ततः प्रहस्यापभयः पुरंदरं पुनर्वभाषे तुरगस्य रक्षिता । 3 / 51
यह सुनकर अश्व के रक्षक रघु ने निडर होकर हँसते हुए इन्द्र से कहा ।
पत्तिः पदातिं रथिनं रथेशस्तुरंगसादी तुरगाधिरूढम् । 7/37 पैदल-पैदलों से, रथवाले रथवालों से और घुड़सवार घुड़सवारों से उलझ पड़े। रथतुरगरजोभिस्तस्य रूक्षलकाग्रा । 7/70
उनके रथ के घोड़ों की टापों से उठी हई धूल से इंदुमती के केश भर गए । तुरग वलान चंचल कुण्डलो विरुरुचे रुरुचेष्टित भूमिषु । 9 / 51 घोड़ों के वेग से चलने के कारण, उनके कानों के कुण्डल भी हिल रहे थे, इस वेष में चलते-चलते वे उस जंगल में पहुँचे जहाँ रुरु जाति के बहुत हरिण घूमा करते थे।
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अपि तुरग समीपादुत्य तन्तं मयूरं । 9/67
कभी-कभी उनके घोड़े के पास से सुंदर मोर भी उड़ जाते थे 1
तेनावतीर्य तुरगात्प्रथितान्वयेन पृष्ठान्वयः स जल कुंभ निसण्ण देहः ।
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