Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 435
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 423 रघुवंश अन्योन्य शोभा परिवृद्धये वां योगस्तडित्तोयदयो रिवास्तु। 6/65 यदि तुम दोनों का विवाह हो जाएगा, तो तुम ऐसी सुन्दर लगोगी, जैसे बादल के साथ बिजली। श्री:-[श्रि+क्विप्, नि०] महिमा, प्रतिष्ठ, सौन्दर्य, चारुता, लालित्य, कांति। तिरश्चकार भ्रमराभिलीनयोः सुजातयोः पङ्कजकोशयोः श्रियम्। 3/8 उनकी शोभा के आगे कमल के जोड़े पर बैठे हुए भौरों की शोभा भी हार मान बैठी। दशदिगन्त जिता रघुणा यथा श्रियम पुष्यदजेन ततः परम्। 9/5 जैसे दसों दिशाओं को जीतने वाले रघु ने और उनके पीछे उनके पुत्र अज ने पृथ्वी की शोभा बढ़ाई थी। संगर 1. प्रतिज्ञा :-[प्रति + ज्ञा + अङ् + टाप्] व्रत, वचन, वादा, करार। उत्खातलोकत्रयकण्टकेऽपि सत्यप्रतिज्ञेऽप्यविकत्थेनेऽपि। 14/73 यद्यपि राम तीनों लोकों का दुःख दूर करने वाले हैं, अपनी प्रतिज्ञा के पक्के हैं और अपने मुँह से अपनी बाई भी नहीं करते। 2. संगर :-[सम् + गृ + अप्] प्रतिज्ञा, करार। तथेति तस्यावितथं प्रतीतः प्रत्यग्रहीत्संगरग्रजन्मा। 5/26 यह सुनकर कौत्स बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने सत्यवादी दृढ़ प्रतिज्ञ रघु की बात मान ली। मैथिलः सपदि सत्यसंगरो राघवाय तनयामयोनिजाम्। 11/48 सत्य प्रतिज्ञा करने वाले जनक ने उन्हीं के आगे राम को सीता समर्पित कर दी। अद्धा श्रियं पालित संगराय प्रत्यर्पयिष्यत्यनघां स साधुः। 13/65 वैसे ही अब मैं अवधि पूरी करके जो लौटा हूँ, तो जान पड़ता है कि सज्जन भरत मुझे सुरक्षित राज्यलक्ष्मी अवश्य ही सौंपेंगे। संत 1. साधु :-[साध् + उन्] गुणी, पुण्यात्मा, पवित्रात्मा, कृपालु, दयालु, ऋषि, मुनि, संत। For Private And Personal Use Only

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