Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 458
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 446 कालिदास पर्याय कोश निर्वत्यैवं दशमुखशिरश्छेदकार्यं सुराणां। 15/103 विष्णु भगवान ने इस प्रकार रावण का वध करके देवताओं का कार्य पूरा किया। सुरभि 1. सुगन्धि :-[सु + गन्धिः ] खुशबूदार, सुरभित, सुरभि । अंय सुजातोऽनुगिरं तमाल: प्रवालमादाय सुगन्धि यस्य। 13/49 पहाड़ के ढाल पर जो तमाल का वृक्ष दिखाई दे रहा है यह वही है, जिसकी सुगंधित कोपलों का। सुरभि :-[सु + रभ् + इन्] मधुर गंध युक्त, खुशबूदार, सुगंध युक्त, सुगंध, खुशबू, सुवास। तदाननं मृत्सुरभि क्षितीश्वरी रहस्यसुपाघ्राय न तृप्ति माययौ। 3/3 वैसे ही मिट्टी खाने से रानी सुदक्षिणा का जो मुँह सोंधा हो गया था, उसे एकांत में बार-बार सूंघकर भी राजा दिलीप अघाते नहीं थे। सुरभि गन्धिषु शुश्रु विरे गिरः कुसुमितासु मिता वनराजिषु। 9/34 जिस समय मनहर सुगंध वाली वन की लताओं पर बैठकर कोयल ने कूक सुनाई तो। ललित विभ्रमबन्धविचक्षणं सुरभिगन्धपराजित केसरम्। 9/36 चितवन आदि मधुर हाव-भाव कराने को उकसाने वाले और बकुल को भी अपनी गंध से हराने वाले। वायवः सुरभिपुष्परेणुभिश्छायया च जलदाः सिषेविरे। 11/11 वायु ने सुगंधित पराग फैलाकर और बादलों ने शीतल छाया देकर, मार्ग में उन दोनों की बड़ी सेवा की। सूर्य 1. अंशुमान :-[अंशु + मान्] सूर्य। विरराज रथप्रष्ठैर्वालखिल्यैरिवांशुमान्। 15/10 जैसे रथ पर चढ़े हुए सूर्य को वालखिल्य नाम के ऋषि लोग, मार्ग दिखाते चलते हैं। 2. अरुण :-[ऋ + उनन्] सूर्य। यावत्प्रतापनिधिराक्रमते न भानुरहायतावदरुणेन तमो निरस्तम्। 5/71 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487