Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 424
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 412 कालिदास पर्याय कोश सीताजी ने रो-रोकर जो बातें कही थीं, वे सब राम से यह सोचकर कह दी कि देखें राम अपनी आज्ञा देकर अब भी पछताते हैं या नहीं। शासनाद्रघुनाथस्य चक्रे कारापथेश्वरौ। 15/90 राम की आज्ञा से दोनों पुत्रों को कारापथ का राजा बना दिया। दूरापवर्जितच्छत्रैस्तस्याज्ञां शासनार्पिताम्। 17/79 वैसे ही राजा लोग भी अपने छत्र उतारकर उनकी आज्ञा अपने सिर-माथे चढ़ाते शिर 1. उत्तमाङ्ग:-[उद् + तमप् + अङ्गम्] सिर । कश्चिद्विषत्खड्गहृतोत्तमाङ्गः सद्यो विमानप्रभुतामुपेत्य। 7/51 एक योद्धा का शिर शत्रु की तलवार से कट गया और वह देवता होकर विमान पर चढ़कर, आकाश से यह देखने लगा। 2. मूर्धा :-(पुं०) [मुह्यत्यस्मिन्नाहते इति मूर्धा :-मुह + कनि, उपधाया दी? धोऽन्तादेशी रमागमश्च] मस्तक, भौं, सिर। स प्रतापं महेन्द्रस्य मूर्ध्नि तीक्ष्णन्यवेशयत्। 4/39 रघु ने भी महेन्द्र पहाड़ पर पहुँचकर उसकी चोटी पर अपना पड़ाव जमा दिया। रामेण निहितं मेने पदं दशसु मूर्धसु। 12/52 मानो राम ने उसके दसों सिरों पर पैर रख दिया हो। उपनतमणिबन्धे मूर्ध्नि पौलस्त्यशत्रोः सुरभि सुरविमुक्तं पुष्पवर्ष पपात। 12/102 जिस राम पर राज्याभिषेक का जल छिड़का जाने वाला था, उन्हीं के सिर पर देवताओं ने वे फूल बरसाए, जिसकी सुगंध पाकर। पर्यश्रुरस्वजत मूनि चोपजनौ तद्भक्त्ययोढपितृराज्यमहाभिषेके। 13/70 फिर उनके उस मस्तक को सूंघा, जिसने राम की भक्ति के कारण राज्याभिषेक भी अस्वीकार कर दिया था। तस्यापतन्मूर्ध्नि जलानि जिष्णोविन्ध्यस्य मेघप्रभवा इवापः। 14/8 वह अभिषेक के समय राम के शिर पर वैसे ही बरस रहा था, जैसे विंध्याचल की चोटी पर बादलों का लाया हुआ जल बरसा करता है। For Private And Personal Use Only

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